भस्की बुरु की पौराणिक कथा और आदिवासी मान्यताएं

 

भस्की बुरु की पौराणिक कथा और आदिवासी मान्यताएं

 
Baski Buru

झारखंड की धरती अपने आंचल में कई रहस्यमय और पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है। इन्हीं में से एक है भस्की बुरु, जो न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि आदिवासी समुदायों की आस्था और विश्वास का केंद्र भी है। भस्की बुरु एक पहाड़ी है, जो स्थानीय लोगों के लिए केवल एक भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि एक पवित्र स्थान है, जो उनकी संस्कृति और धर्म का अभिन्न अंग है।

 

भस्की बुरु से जुड़ी लोककथाएं

भस्की बुरु से जुड़ी कई लोककथाएं  प्रचलित हैं, जो इसे एक रहस्यमय और पवित्र स्थान बनाती हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भस्की बुरु का संबंध एक शक्तिशाली देवता या आत्मा से है, जो इस पहाड़ी पर निवास करती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह देवता उनकी रक्षा करता है और उन्हें आपदाओं से बचाता है। लोगो की माने तो भस्की बुरू के कई लोककथाएँ आपको सुनने को मिल सकती हैं, उनमें से कुछ काफी रहस्यमय से जुड़ी हैं और कुछ तो लोगो की आस्था से संबंधित हैं। 
 
भस्की बुरु की कई लोककथा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी कही ओर सुनने को मिलती है। ऐसे ही कुछ लोक कथा आपके समक्ष है : 

1. भस्की ग्राम के लोगों का कहना है की एक अंजन व्यक्ति कहीं से आकर भस्की बुरु के समीप रहेने लगा । वहाँ पे रहते - रहते एक दिन ओ अजिबो- गरिब हरकते करने लगा और संताल के देवी - देवतावो का नाम लेने लगा और गित गाने लगा । जिसे अम लोग भूत चढ़ना कहते है और संताल सब उसे चटीय शब्द सम्बोध करते है। वह व्यक्ति भस्की बुरु के निचे दो अलग- अलग जगह पर जा कर पूजा करने लगा ओर फिर वो दोड़ कर बुरु के ऊपर चढ़ कर  दो ओर अलग - अलग स्थान पर पूजा करने लगा । तब से आज तक इन चार स्थानों पर पूजा अर्चना की जाती है। जिस पे भस्की बुरु के निचे दो स्थानों पे महिलाओं द्वारा पूजा की जाती है और भस्की बुरु के ऊपर में एक स्थान पर महिलाओं और दूसरे स्थान पर पुरुषों के द्वारा पूजा की जाती है।

2. ऐसी ही एक और लोककथा है जो झारखंड के आदिवासी राजनेता शिबू सोरेने से जुड़ा हुआ है । जिसे लोग आदिवासी नेता व दिसोम गुरु से भी जानते है जिन्होंने झारखण्ड को अलग राज्य बनाने के अन्दोलन किये थे ।
लोगों का कहना है जब शिबू सोरेन को 28 नवंबर 2006 में उनके पूर्व सचिव शशिनाथ झा को अपहरण और हत्या के आरोप लगे जिस से प्रधान मंत्री मनमहोन सिंह द्वारा शिबू सोरेन को कोयल मंत्री से इस्तीफ देना पड़ा ।भारत सरकार के न्याय प्रणाली के अनुसार किसी केंद्रीय मंत्री द्वारा हत्या में संलिप्तता का दोषी पाए जाने से 05 दिसंबर 2006 को शिबू सोरेन को आजीवन कारवास की सजा सुनाई गई थी । यह खबर जब आदिवासी समाज के लोगों तक पहुंची तो उन्हें बहुत बड़ा धक्का लगा। तब कुछ आदिवासी समाज के लोगों ने भस्की बुरु में मानसीग (मन्नत) करवाया जिसके बाद 25 जून , 2007 जब शिबू सोरेन को झारखण्ड के दुमका स्थित जेल ले जाने के दोरान उन पर बम से हमला हुआ , लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ । ठीक दो महीने बाद 23 अगस्त, 2007 को जिला न्यायालय के फैसले को खारिज कर शिबू सोरेन को बरी कर दिया गया। जिस से आदिवासी समाज में खुशी की लहर आ गई । मानसीग के अनुसार भस्की बुरु में गुड़ , ताबैन (चूड़ा), धूप - धूड़ा, तोवा(दूध), दआ (जल) को चढ़ा कर पूजा को संपन्न किया गया । इन लोककथा और घटना से आदिवासी समाज मे भस्की बुरु के प्रति दृढ़ विश्वास एवं अस्था है।

(ऐसे ही अगर आपके पास उसकी गुरु से संबंधित कोई लोककथा है तो संपर्क करें।)

भस्की बुरु में चार स्थानों पर पूजा होती है जिस पर तीन स्थानो मे सिर्फ महिलाओं के द्वारा पूजा कि जाती है और एक स्थान पर पुरुषों के द्वारा ।भस्की मे यह पूजा सिर्फ चुढा , गुढ़, दूध, पानी और घूप से सम्पन्न होता हैं।भस्की में मनसिक भी कि जाती है जिसमे निम्न वस्तु प्रसाद के रूप में चढ़या जाता है:
1. चुढा (तबैन), 2. गुढ़ 3. दूध (तोवा) 4. पानी (दआ), 5. घूप
भस्की बुरु में वैसी पूजा होती जैसे अन्य बुरु :
1. मरांग बुरु
2. लुगु बुरु
3. कूडी बुरु
5. पंचित बुरु इत्यादि..

झारखण्ड सरकार भस्की बुरु को पर्यटक एवं धार्मिक स्थाल बनाने के लिए ग्रमिणों एवं जनप्रतिनिधि द्वारा कदम बढ़ा रही है।जिससे ग्रामीणों को रोजगार का अवसर मिल सके । साल 2025 से भस्की जाने वाले रास्ते को शहर से भस्की तक सड़क का निर्माण किया गया । माघ पूर्णिमा में होने वाले सम्मेलन में विभन्न ग्राम के मांझी हड़म और मांझी बुढ़ी और शहर से आये हुए आदिवासीयों को भस्की के कमेटी सदस्य, ट्रस्ट, समाजसेवक जनप्रतिनिधि द्वारा उन्हें घूती - साड़ी दे कर समानित किया जाता हैं। 

भस्की पहाड़ में धूमधाम से की गयी मरांग बुरु जाहेर आयो की पूजा: आदिवासी संस्कृति का अद्वितीय उत्सव

संक्षिप्त विवरण:
झारखंड, बंगाल, और ओडिशा के संथाल समुदाय द्वारा भस्की पहाड़ में आयोजित मरांग बुरु जाहेर आयो की पूजा ने धार्मिक एवं सांस्कृतिक एकता का शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया। माघी पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए, जो अपनी आस्था और धार्मिक परंपराओं का पालन करते हुए पूजा अर्चना करने पहुंचे थे।

धर्म सम्मेलन का महत्व:
भस्की पहाड़ स्थित मारांग बुरू सरना धोरोम गाढ़ में आयोजित यह धर्म सम्मेलन विशेष रूप से संथाल समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां पर मरांग बुरू, जाहेर आयो, लुगु बाबा व लुगु आयो की पूजा का आयोजन किया जाता है, जो उनकी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इस सम्मेलन में संथाल समुदाय के महिला-पुरुषों के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा से भी लोग बड़ी संख्या में पहुंचे।

सांस्कृतिक और धार्मिक एकता:
इस आयोजन में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या ने यह सिद्ध कर दिया कि संथाल समुदाय के बीच प्रकृति और धर्म के प्रति एक गहरी आस्था है। इसका उदाहरण हमें इस उत्सव में देखने को मिलता है, जहां आदिवासी संस्कृति और धार्मिक विश्वासों का संरक्षण और सम्मान होता है। यहां की पूजा अर्चना के दौरान प्रकृति के प्रति आदिवासियों का प्रेम व आस्था साफ नजर आता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आदिवासी समाज में अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास है।

प्राकृतिक आस्था और संस्कृति का संरक्षण:
धर्म सम्मेलन में अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि आदिवासी संस्कृति, जो प्रकृति और उसकी शक्ति के प्रति गहरी श्रद्धा रखती है, दुनिया की महान संस्कृतियों में से एक है। इन संस्कृतियों के माध्यम से हम प्रकृति से जुड़ी बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं, जैसे कि पर्यावरण की रक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखना। यह धर्म सम्मेलन यह संदेश देता है कि हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाए रखना चाहिए और इस पर गर्व महसूस करना चाहिए।

विशेष अतिथियों की उपस्थिति:
कार्यक्रम में कई प्रमुख नेता और प्रतिनिधि उपस्थित थे, जिनमें पूर्व विधायक योगेश्वर महतो बाटुल, विधायक प्रतिनिधि विनोद कुमार महतो, और अन्य स्थानीय नेता जैसे राम कुमार मरांडी, महेश कुमार मुर्मू, महादेव मरांडी, और कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल थे। उनके द्वारा दिए गए भाषणों में आदिवासी संस्कृति के महत्व और इसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया।

निष्कर्ष:
भस्की पहाड़ में आयोजित यह पूजा और धर्म सम्मेलन संथाल समुदाय की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गया है। यह आयोजन न केवल संथालों के लिए, बल्कि पूरे आदिवासी समाज के लिए एक गर्व की बात है कि वे अपनी संस्कृति को पूरी दुनिया के सामने रखते हैं। इस प्रकार के आयोजन आदिवासी समुदाय की पहचान को बनाए रखते हैं और यह दर्शाते हैं कि कैसे उनकी संस्कृति और धार्मिक विश्वास अब भी समाज में जीवित और प्रासंगिक हैं।

विश्लेषण:
इस कार्यक्रम के माध्यम से आदिवासी समाज ने यह साबित किया कि उनका धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन आज भी उनके लिए प्राथमिकता है, और वे इसे समृद्ध और संरक्षित रखने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत हैं। यही कारण है कि इस पूजा-अर्चना में न केवल संथाल, बल्कि अन्य समुदायों के लोग भी उत्साह से भाग लेते हैं। यह पूरे समाज के लिए एक संदेश है कि हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।

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