क्रषि क्षेत्र में स्वावलंबन: रोजगार का नया द्वार
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की अधिकांश जनसंख्या खेती और कृषि से जुड़ी हुई है। कृषि न केवल देश की आर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की जीविका का भी प्रमुख साधन है। हालांकि, आजकल के बदलते समय में जब लोग शहरों की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं, तब कृषि क्षेत्र में स्वावलंबन (Self-reliance) और रोजगार के नए अवसरों की आवश्यकता महसूस हो रही है।
स्वावलंबन का मतलब
स्वावलंबन का अर्थ है अपने बलबूते पर आत्मनिर्भर बनना, किसी दूसरे से सहायता या सहयोग के बिना अपनी आवश्यकता की सभी चीजों को स्वयं प्राप्त करना। कृषि क्षेत्र में स्वावलंबन का मतलब है कि किसानों को न केवल खेती में आत्मनिर्भर बनाना, बल्कि उन्हें नई तकनीकों, संसाधनों और बाजारों से जोड़ना, ताकि वे अपनी स्थिति में सुधार कर सकें और बेहतर आजीविका कमा सकें।
स्वावलंबन के लिए कृषि क्षेत्र में क्या बदलाव जरूरी हैं?
कृषि में नई-नई तकनीकों का उपयोग करके उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। स्मार्ट फार्मिंग, ड्रोन तकनीक, और कृषि यंत्रों का उपयोग किसानों के लिए लाभकारी हो सकता है। इससे कम समय में अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता मिल सकती है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
देश में कई स्थानों पर पानी की कमी है, जिससे फसलों की उपज प्रभावित होती है। यदि किसानों को उचित सिंचाई सुविधाएं और जल प्रबंधन तकनीकों का ज्ञान दिया जाए, तो वे पानी की बचत कर सकते हैं और अपनी उपज बढ़ा सकते हैं।
किसानों को कृषि के नए तरीकों, उन्नत बीजों, कीटनाशकों और उर्वरकों के बारे में प्रशिक्षण देने से उनकी उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। सरकार और विभिन्न एनजीओ को किसानों को मुफ्त में प्रशिक्षण देने के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए।
किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अच्छे बाजारों तक पहुंच मिलनी चाहिए। आजकल डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से किसान अपनी फसल को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा सकते हैं, जिससे बिचौलियों का दबाव कम होगा और उन्हें सही कीमत मिलेगी।
स्वावलंबन से रोजगार के नए अवसर
कृषि में स्वावलंबन से रोजगार के कई नए अवसर पैदा हो सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:
कृषि उत्पादन से संबंधित कई उद्योग जैसे खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी उद्योग, कृषि यंत्र निर्माण आदि रोजगार के नए अवसर उत्पन्न कर सकते हैं। युवा इन उद्योगों में काम करके अच्छी आय कमा सकते हैं।
कृषि पर्यटन, यानी फार्म टूरिज़्म, एक नई अवधारणा है, जो गांवों और कृषि क्षेत्रों में रोजगार सृजन कर सकती है। लोग खेती के वास्तविक अनुभव से जुड़ने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करता है।
किसानों द्वारा उत्पादित स्थानीय और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए नए व्यापारिक मॉडल्स विकसित किए जा सकते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे व्यवसायों का आरंभ हो सकता है, जो स्थानीय स्तर पर रोजगार उत्पन्न कर सकते हैं।
सरकारी योजनाएं और सहायता
भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि "प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना", "कृषि सम्मान निधि", "किसान क्रेडिट कार्ड योजना" आदि। इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को वित्तीय सहायता, सिंचाई सुविधाएं, और अन्य संसाधन मिलते हैं, जिससे वे अपनी खेती को लाभकारी बना सकते हैं।
सफलता की कहानी: कृषि क्षेत्र में स्वावलंबन की दिशा में एक प्रेरणा
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खेती कर आत्मनिर्भर बनीं बरमसिया गांव की नियति देवी |
नियति देवी की यात्रा: एक प्रेरणा
झारखंड के जरीडीह प्रखंड के बरमसिया गांव की नियति देवी एक ऐसी महिला हैं, जिन्होंने कृषि क्षेत्र में स्वावलंबन की मिसाल पेश की है। उनका जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका अनुभव यह दिखाता है कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं तो किसी भी परिस्थिति से उबरना संभव है।
नियति देवी ने अपनी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन उनकी सफलता का श्रेय उनकी मेहनत, दृढ़ नायकता, और सही अवसरों को पहचानने की क्षमता को जाता है। पहले पारा शिक्षक के रूप में कार्य कर चुकी नियति ने खेती में अपना भाग्य आजमाया और आज वह एक सफल किसान बन चुकी हैं।
खेती की ओर कदम बढ़ाना:
नियति देवी के पास खेती करने के लिए भूमि तो थी, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था। पहले वह पारंपरिक फसल प्रणाली पर निर्भर थी, जो उन्हें ज्यादा लाभ नहीं दे पा रही थी। फिर, उन्होंने यह तय किया कि खेती के तरीके में बदलाव करना होगा।
उन्होंने सब्जी की खेती करने का निर्णय लिया और इसके लिए जेएसएलपीएस व तेजस्विनी महिला संघ के रोशनी महिला मंडल से जुड़ने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने 2021 में 1.5 लाख सीसी लीकेज लोन लिया और खेती का कार्य शुरू किया। अब वह लगभग 1 एकड़ 75 डिसमिल में परवल, लौकी, बैंगन, टमाटर, मटर, प्याज, आलू, साग आदि की सब्जियां उगाती हैं।
सफलता का मार्ग:
नियति ने अपनी मेहनत से अपनी आय में शानदार वृद्धि की है। सब्जियों की खेती से आज वह सालाना दो लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं। उन्होंने बताया कि इस साल उन्होंने धान बेच कर एक लाख 50 हजार रुपये की कमाई की है। उनका यह अनुभव यह दर्शाता है कि अगर आप अपने व्यवसाय को सही तरीके से प्रबंधित करें और लगातार मेहनत करें, तो आप अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
बाजार में बढ़ी हुई कीमतों का लाभ:
नियति ने अपने खेतों में सब्जियों की खेती करते समय यह ध्यान रखा कि वह सीजन से पहले ही फसल उगाएं, ताकि बाजार में उसकी कीमत ज्यादा हो। वह दिन के शुरूआत में आस-पास के बाजारों में सब्जियों की कीमतों की जानकारी लेती हैं और फिर उन्हें उच्च कीमत वाले बाजारों में भेज देती हैं। इस तरीके से उन्हें बाजार में प्रति दिन 2,000 से 3,000 रुपये की कमाई हो जाती है, जबकि उनकी उत्पादन लागत 500 रुपये प्रति दिन के करीब होती है। इस तरह से उन्होंने न केवल अपनी फसल को बेहतर तरीके से बेचा, बल्कि बाजार में उच्च कीमतों का भी लाभ उठाया।
पारा शिक्षक के पद से इस्तीफा और राजनीतिक चुनौती:
नियति देवी ने एक समय पर पारा शिक्षक के पद पर काम किया था, लेकिन अपने गांव की सामाजिक सेवा के लिए उन्होंने उस पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया और पंचायत चुनाव में समिति सदस्य के पद के लिए चुनाव लड़ा। हालांकि वह चुनाव हार गईं, लेकिन इससे उनका हौसला नहीं टूटा। चुनाव में उन्होंने जो पूंजी खर्च की थी, वह सब्जी की खेती से ही पूरी हो गई।
परिवार का सहयोग:
नियति देवी की सफलता के पीछे उनके परिवार का बड़ा हाथ है। उन्होंने बताया कि उनके परिवार के सभी सदस्य खेती में उनका सहयोग करते हैं। वह घर चलाने के साथ-साथ अपनी बेटियों की शिक्षा भी सुनिश्चित कर रही हैं। उनकी बड़ी बेटी चंडीगढ़ में बीटेक कर रही है, जबकि छोटी बेटी 11वीं कक्षा में साइंस की पढ़ाई कर रही है। उनका छोटा बेटा भी पढ़ाई में व्यस्त है और कक्षा नवमीं में है।
नियति देवी की कहानी यह साबित करती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन हों, अगर हम मेहनत और सही दिशा में कदम बढ़ाएं तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने खेती के क्षेत्र में अपने आत्मनिर्भर होने का सपना साकार किया और दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बन गईं। उनका संघर्ष और सफलता हमें यह सिखाता है कि किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए सही सोच, संघर्ष और समर्पण आवश्यक होते हैं।
इस तरह के संघर्षों की कहानियां हमें न केवल प्रेरित करती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि कृषि क्षेत्र में बदलाव और नवाचार के द्वारा हम सभी आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
2. बहन से प्रेरणा लेकर महुआटांड़ की बबीता ने शुरू की गेंदा फूल और तरबूज की खेती
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बहन से प्रेरणा लेकर महुआटांड़ की बबीता ने शुरू की गेंदा फूल और तरबूज की खेती |
बबीता देवी की यात्रा: एक नई शुरुआत
महुआटांड़ पंचायत के निवासी बबीता देवी की कहानी एक प्रेरणा है कि कैसे एक छोटी सी प्रेरणा से एक महिला ने कृषि क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। यह कहानी हमें यह दिखाती है कि यदि हमारे पास सही मार्गदर्शन और सही अवसर हो, तो हम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं और आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
प्रेरणा का स्रोत:
बबीता देवी की सफलता की कहानी की शुरुआत उनके परिवार से ही हुई। बबीता की बहन जो गोला में रहती हैं, फूलों की खेती करती हैं और रजरप्पा मंदिर में फूल बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा रही हैं। जब बबीता ने अपनी बहन से इस व्यापार के बारे में सुना, तो उसे यह विचार बहुत आकर्षक लगा। वह अपने खेत में फूलों की खेती करने का सपना देख रही थीं और अपनी बहन से प्रेरणा लेकर उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाया।
खेती की शुरुआत:
बबीता देवी ने अपने घर के पास लगभग 25 डिसमिल भूमि में गेंदा फूल और तरबूज की खेती शुरू की। उन्होंने बताया कि उन्होंने महिला समूह से ऋण लिया और फूलों के बीज को कोलकाता से 6,000 रुपये में खरीदा। फूलों की खेती के लिए कुल मिलाकर लगभग 10,000 रुपये की पूंजी खर्च की गई थी। बबीता को पूरा भरोसा था कि उनकी निवेश की गई पूंजी से दोगुनी आमदनी होगी।
बबीता का यह निर्णय एक साहसिक कदम था, क्योंकि उन्होंने एक नया प्रकार का कृषि व्यवसाय चुना, जो न केवल लाभकारी था बल्कि साथ ही एक नई दिशा में उनके परिवार को आगे बढ़ाने का अवसर भी प्रदान करता था।
सिंचाई की समस्या और समाधान:
बबीता देवी ने अपनी खेती को और भी बड़े स्तर पर फैलाने के लिए सिंचाई के अच्छे साधनों की आवश्यकता महसूस की। उनके पास घर के पास एक कूप था, जिससे वह सिंचाई कर सकती थीं। लेकिन, उन्होंने यह भी महसूस किया कि सोलर युक्त पंप सेट होने पर वह अपने खेतों में बड़े पैमाने पर खेती कर सकती हैं और पानी की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री कुसुम योजना के तहत सोलर युक्त मोटर पंप के लिए आवेदन किया, ताकि उनकी खेती की क्षमता और बढ़ सके।
सहयोग और समर्थन:
बबीता की खेती के प्रयासों की सराहना भी की गई। गोमिया प्रखंड के बीटीएम बबलू सिंह ने बबीता से मिलकर उनकी खेती का अवलोकन किया और उनकी मेहनत की सराहना की। उन्होंने बबीता को आश्वासन दिया कि उन्हें सोलर युक्त पंप सेट दिलाने के लिए वरीय अधिकारियों को सूचित किया जाएगा और मार्च तक यह योजना पूरी हो जाएगी। इसके साथ ही, बीडीओ महादेव कुमार महतो ने बबीता को बैंक से ऋण दिलाने का वादा किया, जिससे वह अपनी खेती को और बड़े स्तर पर विस्तार दे सकती थीं।
परिवार का सहयोग:
बबीता देवी के पति भी खेती में उनका पूरा सहयोग करते हैं। उनका पति बीपीटी हैं और वह खेती के कार्यों में पूरी तरह से हाथ बटाते हैं। परिवार के इस सहयोग से बबीता को खेती में सफलता पाने में मदद मिली है, और उनका विश्वास बढ़ा है कि सही मार्गदर्शन और परिवार के समर्थन से कोई भी काम मुश्किल नहीं होता।
सफलता की दिशा में कदम:
बबीता देवी ने अपनी मेहनत और सही मार्गदर्शन से यह साबित कर दिया कि अगर मन में ठान लिया जाए, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। उनके खेतों में गेंदा फूल और तरबूज की खेती से अब उन्हें अच्छी कमाई हो रही है और वह अपने परिवार को एक बेहतर जीवन प्रदान कर रही हैं।
बबीता देवी की सफलता यह बताती है कि सही दिशा में किए गए छोटे प्रयासों से बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है। उनका संघर्ष और सफलता हमें यह सिखाती है कि कृषि क्षेत्र में भी न केवल पारंपरिक फसलों, बल्कि नए प्रयोगों और तकनीकी विकास के माध्यम से अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।
नियति देवी और बबीता देवी की कहानियाँ यह दर्शाती हैं कि महिलाओं की शक्ति और उनकी मेहनत से कोई भी कार्य संभव है। इन दोनों की सफलता हमें प्रेरित करती है कि अगर हम अपने प्रयासों को सही दिशा में लगाएं, तो हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं और अपने परिवार की जिंदगी बदल सकते हैं।