समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) : समानता की ओर एक कदम

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) : समानता की ओर एक कदम

 भारत एक विविधता से भरा देश है, जहां विभिन्न धर्म, भाषाएं, और सांस्कृतिक परंपराएं सह-अस्तित्व में हैं। ऐसे में, समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) एक ऐसा विषय है जो अक्सर बहस का केंद्र बनता है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत एक निर्देशित सिद्धांत है, जिसका उद्देश्य देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून व्यवस्था लागू करना है।

समान नागरिक संहिता का परिचय

समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि देश के सभी नागरिक, चाहे उनका धर्म या जाति कोई भी हो, समान नागरिक कानूनों के तहत आएं। इसका उद्देश्य विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने आदि से जुड़े व्यक्तिगत कानूनों को समान बनाना है। वर्तमान में, भारत में विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं, जैसे कि हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ, और ईसाई विवाह अधिनियम। UCC इन सभी को एकीकृत करने का प्रयास करता है।

समान नागरिक संहिता का इतिहास

समान नागरिक संहिता की अवधारणा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उभरी। 1947 में स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा में इस पर चर्चा हुई, और इसे संविधान के निर्देशित सिद्धांतों में शामिल किया गया। हालांकि, इसे तुरंत लागू नहीं किया गया क्योंकि धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए यह एक संवेदनशील विषय था।

1956 में हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू कानूनों में सुधार हुआ, लेकिन मुस्लिम और अन्य धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों को बदलने का प्रयास नहीं किया गया। इसके बाद से UCC का मुद्दा धीरे-धीरे राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का हिस्सा बनता गया।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

  1. समानता की स्थापना: वर्तमान में विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में असमानता है, जो कई बार महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन करती है। UCC के माध्यम से सभी नागरिकों को समान अधिकार और कर्तव्य मिल सकते हैं।
     
  2. लैंगिक न्याय: मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों में महिलाओं के खिलाफ कई भेदभावपूर्ण प्रावधान हैं। UCC इन भेदभावों को समाप्त कर सकता है और महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित कर सकता है।
     
  3. राष्ट्रीय एकता: एक समान कानून व्यवस्था से नागरिकों के बीच एकता और भाईचारा बढ़ेगा। यह "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की अवधारणा को मजबूत करेगा।
     
  4. कानूनी सरलीकरण: अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने से न्यायिक प्रक्रिया जटिल हो जाती है। UCC से कानून सरल और पारदर्शी बनेंगे।

 

समान नागरिक संहिता को लेकर चुनौतियां

  1. धार्मिक स्वतंत्रता: UCC को लेकर सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का हनन कर सकता है।
  2. सांस्कृतिक विविधता: भारत की सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए एक समान कानून लागू करना मुश्किल हो सकता है।
  3. राजनीतिक विरोध: UCC का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक की राजनीति से भी जुड़ा हुआ है।

 

उत्तराखंड: समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य

2025 में उत्तराखंड ने इतिहास रचते हुए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) को लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बनने का गौरव हासिल किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस ऐतिहासिक निर्णय की घोषणा करते हुए इसे लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय, और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। UCC के तहत उत्तराखंड में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, और गोद लेने से संबंधित सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू होंगे। इसके साथ ही, विवाह पंजीकरण (मैरिज रजिस्ट्रेशन) को भी अनिवार्य कर दिया गया है।

 उत्तराखंड का ऐतिहासिक निर्णय

उत्तराखंड ने 2025 में UCC को लागू करके एक मिसाल पेश की। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे राज्य में सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

UCC के प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:

  • विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, और गोद लेने के लिए समान कानून।
  • विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करना।
  • भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करना।

उत्तराखंड का यह ऐतिहासिक निर्णय अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा बन सकता है। समान नागरिक संहिता समानता, लैंगिक न्याय, और राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसे पूरे देश में लागू करने के लिए व्यापक संवाद, जागरूकता और सहमति की आवश्यकता होगी। यह केवल कानूनी बदलाव का मामला नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का भी विषय है। अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह भारत को एक अधिक प्रगतिशील और समानतापूर्ण समाज बनाने में मदद कर सकता है।

निष्कर्ष

समान नागरिक संहिता समानता, लैंगिक न्याय और राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए व्यापक संवाद, जागरूकता और सहमति की आवश्यकता है। यह केवल कानूनी बदलाव का मामला नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का भी विषय है। अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह भारत को एक अधिक प्रगतिशील और समानतापूर्ण समाज बनाने में मदद कर सकता है।


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