PESA एक्ट और आदिवासी समुदाय: अधिकार और लाभ
परिचय
भारत में आदिवासी समुदायों की विशेष स्थिति और अधिकारों के संरक्षण के लिए विभिन्न सरकारी उपायों और कानूनों की आवश्यकता रही है। इनमें से एक महत्वपूर्ण कानून है - PESA एक्ट (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act), जिसे 1996 में लागू किया गया था। इस कानून का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में पंचायतों को सशक्त बनाना और उनकी पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करना है। PESA एक्ट, संविधान के अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित अनुच्छेद 244(1) के तहत लागू किया गया और इसे आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों के कामकाज को विस्तार देने के लिए बनाया गया।
इस लेख में हम "PESA एक्ट और आदिवासी समुदाय: अधिकार और लाभ" पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि हम समझ सकें कि इस कानून से आदिवासी समुदाय को क्या अधिकार मिलते हैं और यह उन्हें किस तरह लाभ पहुंचाता है।
PESA एक्ट का उद्देश्य और महत्व
PESA एक्ट का मुख्य उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में पंचायतों की स्वायत्तता को बढ़ावा देना और आदिवासी समुदायों के अधिकारों का संरक्षण करना था। भारत में आदिवासी समुदाय पारंपरिक रूप से अपने समुदायों और वन संसाधनों के साथ गहरे जुड़े होते हैं, लेकिन कई बार उन्हें अपने ही संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार नहीं मिलता। PESA एक्ट इन समुदायों को यह अधिकार प्रदान करता है कि वे अपनी ग्राम पंचायतों और क्षेत्रीय निकायों में प्रभावी रूप से शामिल हो सकें और उनके विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
PESA एक्ट का प्रमुख प्रावधान
PESA एक्ट के तहत, भारत सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में पंचायतों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:
- स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्ति: PESA एक्ट के तहत, पंचायतों को अपने क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के निर्णय लेने का अधिकार दिया जाता है, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के लिए। पंचायतों को उनके स्थानीय मामलों में निर्णय लेने की पूरी स्वायत्तता होती है, जैसे कि जल, जंगल, जमीन और अन्य संसाधनों पर नियंत्रण।
- स्थानीय विकास में सहभागिता: यह एक्ट आदिवासी समुदायों को स्थानीय विकास योजनाओं में सक्रिय भागीदार बनाने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार, पंचायतों को स्थानीय स्तर पर योजना बनाने और उसे लागू करने का अधिकार होता है।
- विधिक संरक्षण: PESA एक्ट आदिवासी समुदायों के पारंपरिक कानूनी ढांचे को मान्यता देता है। इससे आदिवासी समुदायों को अपने पारंपरिक तरीके से जीवन यापन करने और अपने सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों को बनाए रखने का मौका मिलता है।
- जनजातीय महिलाओं के अधिकार: PESA एक्ट आदिवासी महिलाओं को पंचायतों में अपनी आवाज उठाने का अधिकार प्रदान करता है। यह उनके सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण में सहायक है।
- स्वायत्तता का विस्तार: PESA एक्ट में यह प्रावधान है कि ग्राम सभाओं को अपने पारंपरिक कार्यों और समाजिक व्यवस्थाओं को बनाए रखने का अधिकार मिलता है। इससे आदिवासी समुदाय अपनी पहचान और संस्कृति को संरक्षित कर सकते हैं।
PESA एक्ट के तहत आदिवासी समुदायों के अधिकार
PESA एक्ट से आदिवासी समुदाय को होने वाले लाभ
PESA एक्ट की चुनौतियाँ और समस्याएँ
हालाँकि PESA एक्ट आदिवासी समुदायों के लिए कई लाभकारी प्रावधानों के साथ आया है, लेकिन इसकी प्रभावी कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियाँ भी हैं।
1. प्रशासनिक बाधाएँ: कई बार राज्य और स्थानीय प्रशासन PESA एक्ट को पूरी तरह से लागू नहीं करते, जिसके कारण आदिवासी समुदायों को इसका सही लाभ नहीं मिलता।
2. संसाधनों की कमी: पंचायतों को पूरी स्वायत्तता देने के बावजूद, कई बार संसाधनों और तकनीकी सहायता की कमी होती है, जिससे स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने में कठिनाई आती है।
3. सामाजिक असमानताएँ: कुछ क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को पारंपरिक रूप से कमजोर माना जाता है, और उन्हें अपने अधिकारों को प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।
जेपी आरए (Jharkhand Rehabilitation Act) और अनुसूचित क्षेत्रों से इसे हटाने की मांग
जेपी आरए (Jharkhand Rehabilitation Act) क्या है?
जेपी आरए का पूरा नाम झारखंड पुनर्वास अधिनियम है। यह अधिनियम झारखंड राज्य के उन क्षेत्रों में लागू होता है, जो अनुसूचित जनजाति (ST) क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के अधिकारों और उनके पुनर्वास को सुरक्षित रखना है।
जेपी आरए के तहत, झारखंड में औद्योगिकीकरण, खनन, शहरीकरण और अन्य विकास कार्यों को करने से पहले यह सुनिश्चित करना होता है कि इन विकास परियोजनाओं से आदिवासी समुदायों के पारंपरिक अधिकारों और भूमि का नुकसान न हो। इसके माध्यम से आदिवासी लोगों को उनकी भूमि पर अधिकार और पुनर्वास की उचित प्रक्रिया प्रदान की जाती है।
अनुसूचित क्षेत्रों से जेपी आरए हटाने की मांग क्यों हो रही है?
हालांकि जेपी आरए का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन अब यह मुद्दा राजनीतिक और विकासात्मक दृष्टिकोण से विवाद का विषय बन गया है। कई कारण हैं, जिनकी वजह से अनुसूचित क्षेत्रों से जेपी आरए को हटाने की मांग उठ रही है:
1. औद्योगिकीकरण और विकास में बाधाएं
जेपी आरए के लागू होने से कई कंपनियों और उद्योगों को झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में निवेश करने में कठिनाइयाँ आ रही हैं। विकास कार्यों की अनुमति पाने के लिए जिन प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है, वे समय-खपत और जटिल हो सकती हैं। ऐसे में, कई लोग यह मानते हैं कि जेपी आरए के कारण इन क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की गति धीमी पड़ रही है।
2. आर्थिक नुकसान
राज्य सरकार और कुछ व्यापारी वर्गों का कहना है कि जेपी आरए के कारण इन क्षेत्रों में औद्योगिक निवेश में कमी आई है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, बड़े पैमाने पर विकास कार्यों में निवेश न होने से रोजगार के अवसर भी सीमित हो रहे हैं, जिससे राज्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर असर पड़ रहा है।
3. नौकरियों और रोजगार के अवसरों की कमी
औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया में रुकावट के कारण इन क्षेत्रों में नौकरियों और रोजगार के अवसर भी प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से गैर-आदिवासी समुदायों के लिए, जो इन क्षेत्रों में निवेश के बढ़ने से रोजगार की संभावना देखते हैं, जेपी आरए एक अवरोध की तरह महसूस हो रहा है।
अनुसूचित क्षेत्रों से जेपी आरए हटाने की ताजा मांग
हाल ही में आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए पेसा कानून 1996 के 23 प्रावधानों के अनुरूप नियमावली लागू करें। परिषद के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग, महासचिव सुषमा बिरूली और कोषाध्यक्ष मेरी क्लोडिया सोरेंग ने कहा कि झारखंड विधानसभा के आगामी बजट सत्र में राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में असंवैधानिक तरीके से लागू किए गए झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 (जेपीआरए) को हटाया जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि पेसा नियमावली को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने तक बालू घाटों की नीलामी, खनिज लीज का आवंटन, भूमि अधिग्रहण, कंपनियों के साथ एमओयू, आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री, शराब की बिक्री, और जमीन सर्वे पर रोक लगनी चाहिए। उनका कहना है कि इन मुद्दों पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि आदिवासी समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन न हो सके और विकास कार्यों में आदिवासियों का भी समान अधिकार सुनिश्चित किया जा सके।
क्या जेपी आरए को हटाना आदिवासी अधिकारों के लिए खतरा होगा?
जहां एक ओर जेपी आरए हटाने की मांग हो रही है, वहीं दूसरी ओर आदिवासी समुदाय के कई संगठन और नेता इस मांग का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर यह अधिनियम हटा दिया जाता है, तो आदिवासी समुदायों की पारंपरिक भूमि और अधिकारों का हनन हो सकता है। उनका मानना है कि बिना इस कानून के आदिवासी भूमि को आसानी से कंपनियों द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है, जिससे आदिवासी समाज की संस्कृति और अस्तित्व को खतरा हो सकता है।
आदिवासी समुदायों का यह भी कहना है कि यह कानून उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है और इसको हटाने से उनके जीवन और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ सकता है।
जेपी आरए के लागू होने के बाद से झारखंड में विकास और आदिवासी अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती सामने आई है। जहां कुछ लोग इसे विकास के मार्ग में रुकावट मानते हैं, वहीं आदिवासी समुदाय इसे अपनी सुरक्षा और अधिकारों का संरक्षण मानते हैं।
इस मुद्दे पर एक स्पष्ट समाधान की आवश्यकता है, ताकि झारखंड के आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करते हुए राज्य का समग्र विकास भी संभव हो सके। आदिवासी हितों और राज्य के विकास के बीच एक समझौता ढूंढना जरूरी है, ताकि दोनों पक्षों को समान रूप से लाभ हो सके।
झारखंड में पेसा कानून लागू करने की मांग और आदिवासी संगठनों का विरोध
1. परिचय: पदयात्रा और रांची पहुंचना
यह समाचार झारखंड में आदिवासी संगठनों द्वारा पेसा (पंचायतों का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 को लागू करने की मांग को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन पर प्रकाश डालता है। खूंटी जिले के डोंबारी से दो दिन पहले शुरू हुई पदयात्रा (पैदल मार्च) शुक्रवार को रांची पहुंची। इस मार्च का समापन झारखंड विधानसभा के घेराव के साथ हुआ, जहां विभिन्न आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने सरकार के सामने अपनी मांगें रखीं।
2. आदिवासी संगठनों की मुख्य मांगें
आदिवासी संगठनों की प्रमुख मांग पेसा अधिनियम, 1996 को लागू करने की है, जो अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को विशेष अधिकार प्रदान करता है। विशेष रूप से, वे निम्नलिखित मांगें कर रहे हैं:
- झारखंड पंचायती राज अधिनियम, 2001 को निरस्त किया जाए, जो उनके अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है।
- पेसा अधिनियम के 23 प्रावधानों को उचित नियमावली के माध्यम से लागू किया जाए।
- ग्राम सभाओं (गाँव परिषदों) के संवैधानिक, कानूनी और पारंपरिक अधिकारों की रक्षा की जाए।
3. मंत्री दीपिका पांडेय से मुलाकात
विरोध प्रदर्शन के दौरान, आदिवासी संगठनों के 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री दीपिका पांडेय से मुलाकात की। मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि पेसा अधिनियम को आदिवासी समुदायों की भावनाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप लागू किया जाएगा। हालांकि, यह आश्वासन सरकार की निष्क्रियता और लंबे समय से चल रहे आंदोलन के बाद आया है।
4. आदिवासी नेतृत्व की आवाजें
विरोध प्रदर्शन के दौरान कई आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी चिंताएं व्यक्त कीं:
- झारखंड उलगुलान संघ के संयोजक अलेस्टेयर बोदरा ने इस आंदोलन को "नए उलगुलान (विद्रोह)" की शुरुआत बताया, जो ग्राम सभाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए है।
- मुंडा आदिवासी समाज महासभा के सचिव बिनसाय मुंडा ने जोर देकर कहा कि झारखंड पंचायती राज अधिनियम, 2001 सामान्य क्षेत्रों के लिए है, जबकि पेसा विशेष रूप से अनुसूचित क्षेत्रों के लिए बनाया गया है।
- सुषमा बिरूली ने बताया कि आदिवासी समुदाय 24 दिसंबर 2024 से पेसा कानून लागू करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों के प्रति उदासीन बनी हुई है।
5. सरकार की निष्क्रियता की आलोचना
समाचार में आदिवासी नेताओं की सरकार की निष्क्रियता के प्रति निराशा को उजागर किया गया है। आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग ने पेसा अधिनियम को लागू न करने को राज्य के लिए एक "कलंक" बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज करती रही, तो "पेसा उलगुलान" के तहत बड़ी संख्या में लोग मोरहाबादी मैदान में एकत्र होंगे।
6. विरोध प्रदर्शन के व्यापक प्रभाव
यह विरोध प्रदर्शन झारखंड के आदिवासी समुदायों की भूमि, संसाधनों और स्वशासन के अधिकारों को सुरक्षित करने की लंबी लड़ाई को दर्शाता है। पेसा अधिनियम को ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने और आदिवासी समुदायों को उनके क्षेत्रों के विकास और शासन में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है। इसके क्रियान्वयन में देरी ने आदिवासी संगठनों में व्यापक असंतोष और जुटान को जन्म दिया है।
7. निष्कर्ष: तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता
समाचार का निष्कर्ष आदिवासी नेताओं के एक स्पष्ट संदेश के साथ है: सरकार को पेसा अधिनियम को लागू करने और आदिवासी समुदायों की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसा न करने पर प्रदर्शनों में और तेजी आ सकती है और राज्य में अशांति फैल सकती है। यह आंदोलन झारखंड में आदिवासी अधिकारों और स्वशासन के लिए एक नई लहर का प्रतीक है।
मुख्य बिंदु:
- विरोध प्रदर्शन में पेसा अधिनियम को लागू करने और झारखंड पंचायती राज अधिनियम, 2001 को निरस्त करने की मांग की गई है।
- आदिवासी नेताओं ने सरकार की निष्क्रियता और उदासीनता पर निराशा व्यक्त की है।
- यह आंदोलन संवैधानिक और पारंपरिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक नए उलगुलान (विद्रोह) की शुरुआत है।
- सरकार का पेसा लागू करने का आश्वासन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन आदिवासी संगठन सतर्क हैं और यदि आवश्यक हुआ तो और आंदोलन के लिए तैयार हैं।
निष्कर्ष
PESA एक्ट एक महत्वपूर्ण कदम है जो आदिवासी समुदायों के लिए स्वायत्तता और अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है। यह कानून पंचायतों को सशक्त बनाता है और आदिवासी क्षेत्रों में विकास के अवसरों को बढ़ावा देता है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी हैं, लेकिन अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह आदिवासी समुदायों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।