डुमरिया के बाकड़ाकोचा गांव का 'भगीरथ प्रयास' – शांखाभांगा पहाड़ से पानी लाने की सफलता
डुमरिया प्रखंड के पलाशबनी पंचायत के अंतर्गत आने वाले बाकड़ाकोचा गांव के ग्रामीणों ने एक ऐसा काम कर दिखाया है, जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि अगर हौसला बुलंद हो, तो कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है। इस गांव के लोगों ने अपने दम पर एक बड़ी चुनौती को स्वीकार किया और करीब 4000 फीट ऊंचे शांखाभांगा पहाड़ से पानी पाइप के जरिए गांव तक लाकर अपनी पेयजल और सिंचाई की समस्या का स्थायी समाधान किया।
'भगीरथ' प्रयास से समाधान
वर्षों तक पानी के संकट से जूझ रहे गांव के लोग जब सरकारी मदद से थक चुके थे, तो उन्होंने अपनी मेहनत और एकजुटता से इस समस्या का समाधान ढूंढ निकाला। पहाड़ के झरने का पानी अब पाइप से गांव तक लाया जा रहा है, जिससे न केवल पीने का पानी उपलब्ध हुआ है, बल्कि खेती-बाड़ी में भी क्रांति आई है।
गांव के लोग बताते हैं कि पहले वे नाला और कच्चे चुआं का पानी पीने के लिए मजबूर थे। गर्मियों में पानी की भारी कमी हो जाती थी और कई बार पानी के लिए रतजगा तक करना पड़ता था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। अब वे शांखाभांगा पहाड़ के झरने का पानी आसानी से अपने गांव तक लाने में सफल हो गए हैं।
ग्रामीणों का योगदान
यह सफलता गांववासियों के श्रमदान और एकजुटता का परिणाम है। ग्रामीणों ने चंदा कर एक लाख रुपये एकत्र किए और इसके बाद पाइप और अन्य सामग्रियां खरीदने के लिए करीब 95 हजार रुपये खर्च किए। इसके बाद गांव में पानी लाने का काम शुरू हुआ। पहले पहाड़ पर एक सीमेंट की टंकी बनाई गई, फिर पाइप को जोड़कर बांस और लकड़ी के खंभों के सहारे पानी गांव तक पहुंचाया गया। कई स्थानों पर पहाड़ को खोदकर पाइपलाइन बिछाई गई।
गांव के प्रधान कुंवर सोरेन और अन्य ग्रामीणों का कहना है कि अब गांव में पानी की कोई कमी नहीं है। पहले जहां पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता था, वहीं अब इस जलस्रोत से ना सिर्फ पीने के लिए पानी मिल रहा है, बल्कि गांव के लोग खेती में भी इसका उपयोग कर रहे हैं।
पानी के साथ खेती में वृद्धि
बाकड़ाकोचा गांव के लोग शांखाभांगा पहाड़ के पानी से कई एकड़ में खेती कर रहे हैं। यहां के लोग गोभी, टमाटर, बैंगन, मक्का, सरसों और धान जैसी फसलें उगा रहे हैं। पहले जहां पानी की कमी के कारण खेती के लिए ज़रूरी जल आपूर्ति नहीं मिल पाती थी, अब वही पानी किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस पहल ने गांव में खुशहाली ला दी है और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
सरकारी सहायता की उम्मीद
गांव के लोग इस प्रयास को देखकर प्रसन्न हैं, लेकिन उनका मानना है कि अगर सरकार मदद करे, तो स्थिति और बेहतर हो सकती है। वे उम्मीद करते हैं कि सरकार सिंचाई व्यवस्था के लिए और अधिक सहायता प्रदान करेगी, ताकि खेती में पैदावार और बढ़ सके। इसी संदर्भ में, हाल में पेयजल विभाग ने गांव में सोलर जलमीनार लगाई है, जो पानी की कमी को दूर करने में मददगार साबित हो रही है। हालांकि, सरकार द्वारा लगाए गए नलकूप की स्थिति अब ठीक नहीं है, और वह पहले की तरह सक्रिय नहीं है।
गांव में हर किसी का योगदान
बाकड़ाकोचा गांव में 27 आदिवासी परिवार रहते हैं, और इनकी कुल आबादी लगभग 300 है। इन परिवारों ने मिलकर अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए साहसिक कदम उठाया। पूर्व ग्राम प्रधान गणेश बेसरा के नेतृत्व में, गांववासियों ने मिलकर पहाड़ी झरने से पानी लाने के लिए योजना बनाई और उसे सफलतापूर्वक लागू किया।
ग्राम प्रधान कुंवर सोरेन कहते हैं, "पहले हम लोग पानी के लिए तरसते थे, लेकिन अब हमारी मेहनत और एकजुटता से हम 4000 फीट ऊंचे पहाड़ से पानी लाने में सफल हो गए हैं। यह हम सब के लिए एक बड़ी सफलता है।" वहीं, ग्रामीण सिंगराई बेसरा का कहना है, "जब सरकार ने साथ नहीं दिया, तो हमने खुद ही पहल की। यह हमारे सामूहिक प्रयास का परिणाम है कि आज हम पानी का उपयोग पीने के साथ-साथ खेती के लिए भी कर रहे हैं।"
एक मिसाल बनते लोग
बाकड़ाकोचा गांव की इस पहल ने पूरे जिले के लिए एक मिसाल पेश की है। इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि अगर ग्रामीणों में एकजुटता हो और वे अपने हक के लिए संघर्ष करें, तो कोई भी समस्या हल हो सकती है। गांव के लोग अब अपने आप को आत्मनिर्भर मानते हैं और उनके इस प्रयास ने यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी संकट का समाधान मेहनत और एकजुटता से संभव है।
भविष्य की दिशा
बाकड़ाकोचा गांव के ग्रामीणों की इस सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर उन्हें ठीक से समर्थन मिले, तो वे अपनी खेती को और भी बेहतर बना सकते हैं और क्षेत्र के अन्य गांवों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। सरकार की ओर से थोड़ी सी मदद और बेहतर योजना के साथ, यहां के किसान अपनी उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ा सकते हैं, जिससे गांव में समृद्धि आएगी और जीवनस्तर में सुधार होगा।
निष्कर्ष
बाकड़ाकोचा गांव के लोग न केवल अपने लिए बल्कि आसपास के क्षेत्र के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं। शांखाभांगा पहाड़ से पानी लाकर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि किसी भी कठिनाई को पार करने के लिए यदि हिम्मत और संकल्प मजबूत हो, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। इस उदाहरण से हमें यह सीखने को मिलता है कि जब हम अपनी समस्याओं का समाधान खुद ढूंढने के लिए तैयार होते हैं, तो हम किसी भी संकट से उबर सकते हैं।