भस्की बुरू: संथाल समाज की एक महत्वपूर्ण धरोहर
संथाल समाज भारत के आदिवासी समुदायों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और उनका इतिहास, संस्कृति और धार्मिक विश्वास समाज में अनमोल धरोहर के रूप में स्थापित हैं। संथाल समाज की संस्कृति में एक खास स्थान रखने वाली एक महत्वपूर्ण परंपरा है- "भस्की बुरू।" यह परंपरा संथाल समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन से गहरे तौर पर जुड़ी हुई है। आइए, जानते हैं भस्की बुरू के बारे में।
भस्की बुरू क्या है?
भस्की बुरू, संथाल समाज के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा और विश्वास है, जिसे संथाल आदिवासी अपनी संस्कृति और धार्मिक जीवन में श्रद्धा और आदर के साथ निभाते हैं।"भस्की" शब्द का अर्थ होता है "गाँव का नाम" और "बुरू" का मतलब होता है "पर्वत" जो संथाल बहुल क्षेत्र जरीडीह प्रखंड, में भस्की पहाड़ पर स्थित है। इसे संथाल समाज के बीच पवित्र और धार्मिक रीति-रिवाजों का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा संथाल समाज के नाइके द्वारा जाहेर आयो और मारंग बुरू की पूजा-अर्चना के दौरान निभाई जाती है।
भस्की बुरू झारखंड राज्य के बोकारो जिले के अंतर्गत जरीडीह प्रखंड के भास्की पंचायत के भस्की ग्राम में स्थित एक प्रसिद्ध पर्वत है। यह स्थल झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा के निकट स्थित है, जिससे इसकी भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्ता और भी बढ़ जाती है।
भस्की बुरू अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यहां की हरियाली, पहाड़ी इलाका और प्राकृतिक दृश्य इसे एक आकर्षक पर्यटक स्थल बनाते हैं। स्थानीय लोग इसे एक पवित्र स्थल के रूप में भी मानते हैं, जहां पारंपरिक त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
यह पर्वत न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है बल्कि यहां के स्थानीय समुदाय के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है। भस्की बुरू पर चढ़ाई करने के दौरान पर्यटक चारों ओर फैले हरे-भरे जंगलों और अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
यह पर्वत झारखंड के पारंपरिक जनजातीय समुदायों, विशेषकर संथाल और अन्य आदिवासी समूहों के लिए एक पवित्र स्थल के रूप में माना जाता है। यहां स्थानीय जनजातियों के धार्मिक अनुष्ठान और पारंपरिक मेले आयोजित किए जाते हैं, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।
भस्की बुरू की ऊँचाई से दूर-दूर तक फैला हरित परिदृश्य दिखाई देता है। पर्वत के चारों ओर घने जंगल, रंग-बिरंगे जंगली फूल, और विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का बसेरा है। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों, ट्रेकिंग के शौकीनों और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थल है। पर्वत के ऊपर चढ़ाई करने पर ठंडी हवाएँ और सूर्योदय-सूर्यास्त के खूबसूरत दृश्य मन मोह लेते हैं।
भस्की बुरू की धार्मिक महत्ता
संथाल समाज में भस्की बुरू का महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत गहरा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, आदिवासी समाज के लोग मानते हैं कि पहाड़ केवल एक प्राकृतिक संरचना नहीं है, बल्कि उसमें आत्मिक और दिव्य शक्तियां निवास करती हैं। उनके अनुसार, पहाड़ उनके पूर्वजों की आत्माओं का बसेरा है और वही प्रकृति की रक्षा करने वाले मरांग बुरू (महान पर्वत देवता) का निवास स्थान है। भस्की बुरू जैसे पवित्र स्थल पर संथाल समाज के लोग एकत्रित होकर जाहेर आयो और मरांग बुरू की पूजा करते हैं। इस पूजा में वे प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और समुदाय की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। पर्वत पूजा का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कि यह पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है। आदिवासी समाज के लोग मानते हैं कि जब तक वे पहाड़ों और जंगलों की रक्षा करेंगे, तब तक उनका जीवन सुरक्षित रहेगा। इस तरह, पर्वत पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह आदिवासी संस्कृति में प्रकृति प्रेम, संरक्षण और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
स्थानीय जनजातीय समुदाय भास्की बुरू को आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं। यहां प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा अवसरों पर पूजा-पाठ और परंपरागत अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। विशेषकर संथाल आदिवासी समुदाय के लोग इस पर्वत पर विशेष धार्मिक आयोजनों के लिए एकत्रित होते हैं।
भस्की बुरू झारखंड के बोकारो जिले के जरीडीह प्रखंड में स्थित है, जो सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। बोकारो शहर से यहाँ के लिए बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन बोकारो स्टील सिटी है, जो प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा हुआ है।
"पूजा में भिन्न ग्राम के मंझी हडाम (ग्राम प्रधान) और समिति द्वारा अपना योगदान देते हैं जिसे मुख्य रूप से - योगीदिह, सुंदरो, पूर्णपानी, भास्की, अरजू, बेलदीह, और ग्राम पंचायत के मुखिया।"
भस्की बुरु संथाल समुदाय के लिए धार्मिक स्थल है, जहाँ प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा को संथाल समुदाय के नेता द्वारा पूजा (बोंगा बुरु) की जाती है। इसका आयोजन संथाल समुदाय के मंझी हडाम (ग्राम प्रधान) और ग्रामवासियों द्वारा किया जाता है।
सांस्कृतिक दृष्टि से पर्वत पूजा संथाल समाज की एकता और सामूहिकता का प्रतीक है। यह एक सामूहिक उत्सव होता है, जिसमें पूरा समुदाय शामिल होता है। पर्वत पूजा के दौरान संथाल लोग अपने पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं, और उनका नृत्य, गीत, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम इस पूजा का अभिन्न हिस्सा होते हैं। यह पूजा उन्हें अपनी परंपराओं और संस्कृति से जुड़ा रखती है, और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करती है।
भस्की के मरांग बुरु सरना धरम गाढ़ में आदिवासी महाधर्म सम्मेलन की तैयारी
12 फरवरी को होगा आयोजन, बड़ी संख्या में जुटेंगे श्रद्धालु
जरीडीह प्रखंड के भस्की पहाड़ स्थित मरांग बुरु सरना धरम गाढ़ में इस वर्ष आदिवासी महाधर्म सम्मेलन का आयोजन 12 फरवरी को किया जाएगा। यह आयोजन प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा के अवसर पर होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। सम्मेलन को सफल बनाने के लिए मंगलवार को मरांग बुरु सरना धरम गाढ़ सुसार समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई।
निष्कर्ष:
संथाल समाज के लिए पर्वत पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह उनके सांस्कृतिक जीवन का भी अभिन्न हिस्सा है। यह पूजा उनके धार्मिक विश्वासों, परंपराओं और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाती है। पर्वत पूजा संथाल समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।