Tribal Advisory Council क्या है ?

 

टीएसी (Tribal Advisory Council) क्या है और इसका इतिहास

टीएसी (Tribal Advisory Council) एक सलाहकार निकाय है, जो भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आदिवासी समुदायों के हितों को संरक्षित करने और उनके लिए कल्याणकारी नीतियों की सिफारिश करने का कार्य करता है। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत गठित किया गया है, जिसका उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में उनके विकास, संरक्षण और कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मार्गदर्शन देना है।

टीएसी का कार्य आदिवासी समुदायों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना और उनके लिए नीतियां और योजनाएं तैयार करना होता है। टीएसी आदिवासी समाज के लिए अधिकारों की सुरक्षा, उनके विकास के मुद्दे और उनके जीवन स्तर में सुधार करने के लिए सलाह देती है।

टीएसी का इतिहास

टीएसी का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत किया गया था, जो आदिवासी क्षेत्रों (या अनुसूचित क्षेत्रों) में विशेष ध्यान देने के लिए था। आदिवासी क्षेत्रों को "अनुसूचित क्षेत्र" माना जाता है, जहां आदिवासी समाज की विशेष सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियां होती हैं। इस कारण, उन्हें मुख्यधारा में समाहित करने और उनके उत्थान के लिए अलग से योजनाओं और नीतियों की आवश्यकता महसूस की गई।

टीएसी का गठन:

भारत में आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, संविधान ने आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान किए हैं। आदिवासी परामर्शदात्र परिषद (Tribal Advisory Council) का गठन इन विशेष क्षेत्रों के लिए किया गया, ताकि आदिवासी क्षेत्रों की समस्याओं और उनके विकास के लिए राज्य सरकारों को सुझाव और मार्गदर्शन मिल सके।

टीएसी की स्थापना 1949 में भारतीय संविधान के निर्माण के समय की गई थी, और इसे भारतीय संविधान में अनुच्छेद 244(1) के तहत मान्यता प्राप्त थी। इसके द्वारा, आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए विशेष कानूनों, योजनाओं और नीतियों का निर्माण किया गया, ताकि उनके विकास और कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके।

टीएसी के गठन का उद्देश्य:

  1. आदिवासी समाज के हितों की सुरक्षा:
    टीएसी का उद्देश्य आदिवासी समाज के हितों की रक्षा करना था, जिससे उनकी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित किया जा सके। टीएसी आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सरकार से सलाह देती है।
  2. विकास और कल्याण योजनाओं की सिफारिश:
    टीएसी को यह अधिकार दिया गया कि वह आदिवासी क्षेत्रों में विकास और कल्याण के लिए योजनाओं की सिफारिश करे। यह परिषद आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों पर काम करती है।
  3. कानूनी और प्रशासनिक सुधारों की सलाह:
    टीएसी आदिवासी क्षेत्रों में लागू कानूनी और प्रशासनिक सुधारों के बारे में सुझाव देती है, जिससे आदिवासी समाज को उनका न्याय और अधिकार मिले।
  4. संविधानिक संरक्षण:
    टीएसी ने आदिवासी क्षेत्रों को संविधानिक संरक्षण देने का कार्य किया, ताकि इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनाई जा सकें।

टीएसी की संरचना

टीएसी एक सलाहकार समिति के रूप में कार्य करती है, और इसके सदस्य राज्य विधानसभा में नियुक्त किए जाते हैं। प्रत्येक टीएसी में राज्य विधानसभा के सदस्यों की संख्या होती है, जिनमें से अधिकतम एक-तिहाई सदस्य आदिवासी समुदाय से होते हैं। इस परिषद में आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ, सरकारी अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हो सकते हैं।

टीएसी के कार्य में मुख्यत: आदिवासी समुदाय के विकास के लिए सरकार को सलाह देना, आदिवासी मामलों की समीक्षा करना और सरकार को आदिवासी समाज के लिए नीतियों का सुझाव देना होता है।

टीएसी के प्रभाव

टीएसी ने भारत के आदिवासी क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण बदलावों की शुरुआत की है, जिसमें आदिवासी समाज के लिए विशेष योजनाओं और नीतियों का निर्माण किया गया है। इसके माध्यम से, आदिवासी समाज को समाज की मुख्यधारा में लाने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।

टीएसी के कार्य के परिणामस्वरूप, सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की, जैसे:

  • आदिवासी उप योजना (Tribal Sub-Plan),
  • आदिवासी शिक्षा योजनाएँ (Tribal Education Schemes),
  • स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम (Health and Nutrition Programs),
  • आदिवासी रोजगार और आजीविका सुधार (Tribal Employment and Livelihood Programs).

टीएसी के माध्यम से, आदिवासी समाज के लिए विशेष योजनाएं बनाई गईं, और उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में मदद मिली। इसके साथ ही, आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लागू किया गया।

पहली बार टीएसी की तर्ज पर झारखंड अनुसूचित जाति परामर्शदात्र परिषद का गठन

झारखंड राज्य, जो आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों का घर है, ने हाल ही में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य सरकार ने टीएसी (Tribal Advisory Council) की तर्ज पर झारखंड अनुसूचित जाति परामर्शदाता परिषद (Scheduled Caste Advisory Council) का गठन करने का निर्णय लिया है। इस परिषद का उद्देश्य राज्य में अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए कार्य करना और उनकी समस्याओं का समाधान करना है।

यह कदम झारखंड में अनुसूचित जाति समुदाय के उत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हो सकता है। आदिवासी समाज के लिए पहले से ही आदिवासी उप योजना जैसे उपाय किए जा रहे थे, अब अनुसूचित जातियों के लिए भी समर्पित परिषद का गठन इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।

परिषद की प्रमुख भूमिकाएँ:

  1. अधिकारों की रक्षा और कल्याण:
    झारखंड अनुसूचित जाति परामर्शदात्र परिषद का प्रमुख उद्देश्य अनुसूचित जाति समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें राज्य की योजनाओं का उचित लाभ दिलाना है। यह परिषद राज्य सरकार से अनुशंसा करेगा ताकि अनुसूचित जातियों के लिए योजनाओं और नीतियों में विशेष प्रावधान किए जाएं।
  2. शिक्षा और रोजगार के अवसर:
    परिषद का एक महत्वपूर्ण कार्य अनुसूचित जाति समुदाय के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाना होगा। परिषद इस समुदाय के लिए विशेष शैक्षिक और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रस्ताव देगा ताकि वे समाज में बेहतर स्थान प्राप्त कर सकें।
  3. स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा:
    परिषद का यह भी कार्य होगा कि वह स्वास्थ्य सेवाओं, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण योजनाओं की समीक्षा कर यह सुनिश्चित करे कि ये सेवाएँ अनुसूचित जातियों तक पहुंचें। राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं की किल्लत को ध्यान में रखते हुए, यह परिषद विशेष रूप से स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के लिए सुझाव देगी।
  4. विकास कार्यों की निगरानी:
    परिषद का यह भी कार्य होगा कि वह राज्य सरकार के विकास कार्यों की निगरानी करे और सुनिश्चित करे कि वे अनुसूचित जाति समुदाय के लाभ में हो। यह परिषद आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदायों के लिए किए जा रहे सभी विकासात्मक कार्यों की प्रभावशीलता की जांच करेगी और आवश्यक सुधार की सिफारिश करेगी।
  5. न्याय की प्राप्ति:
    परिषद, अनुसूचित जाति समुदाय के अधिकारों की उल्लंघना और उनके खिलाफ किसी भी प्रकार के भेदभाव के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। यह परिषद अपने स्तर पर संबंधित सरकारी विभागों से मदद ले सकती है ताकि इन समुदायों को उनके कानूनी अधिकारों का पालन किया जा सके।

परिषद का गठन क्यों जरूरी था?

झारखंड में अनुसूचित जातियों की संख्या अत्यधिक है, और इन समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति अक्सर अनुकूल नहीं होती। राज्य में अनुसूचित जातियों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि शिक्षा में कमी, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, नौकरी के अवसरों की कमी, और भेदभाव। इन समस्याओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है, जिससे राज्य में अनुसूचित जातियों की स्थिति में सुधार हो सके।

टीएसी की तर्ज पर इस परिषद का गठन यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य में अनुसूचित जातियों के लिए विशेष योजनाओं का निर्माण हो और उनका कार्यान्वयन बेहतर तरीके से हो सके। इससे आदिवासी उप योजना की तरह ही अनुसूचित जातियों के लिए भी समर्पित विकास योजनाओं की शुरूआत हो सकती है।

परिषद के गठन से क्या लाभ होंगे?

  1. समाज में समानता:
    इस परिषद के गठन से राज्य में सामाजिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। यह परिषद सुनिश्चित करेगी कि अनुसूचित जाति समुदाय को वही अवसर मिले जो अन्य जातियों को मिलते हैं, और उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाए।
  2. कल्याणकारी योजनाओं का अधिक प्रभावी कार्यान्वयन:
    इस परिषद के माध्यम से राज्य में चल रही कल्याणकारी योजनाओं को सही तरीके से लागू किया जा सकेगा। परिषद आदिवासी उप योजना और अन्य योजनाओं के समान अनुसूचित जातियों के लिए भी इस प्रकार की योजनाओं का निर्माण कर सकती है, जो उनके विकास में सहायक सिद्ध हों।
  3. राज्य सरकार से बेहतर संवाद:
    परिषद राज्य सरकार के साथ बेहतर संवाद स्थापित करेगी, जिससे अनुसूचित जाति समुदाय की समस्याओं को सीधे सरकार तक पहुँचाया जा सके। इसके माध्यम से आदिवासी और अनुसूचित जाति दोनों समुदायों की आवाज राज्य सरकार तक पहुँच पाएगी और उनका समाधान किया जा सकेगा
  4. न्याय और सहायता:
    परिषद इस समुदाय के न्यायिक मुद्दों पर ध्यान देगी, खासकर जब बात उनके अधिकारों के उल्लंघन की हो। यह परिषद आदिवासी समुदाय की तरह ही अनुसूचित जातियों के लिए एक सहायक भूमिका निभाएगी, ताकि उन्हें न्याय मिल सके।

झारखंड सरकार के इस कदम से आदिवासी उप योजना को होगा लाभ

आदिवासी उप योजना में झारखंड सरकार ने आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदायों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है। अनुसूचित जाति परामर्शदात्र परिषद के गठन से आदिवासी उप योजना के कार्यान्वयन में भी मदद मिल सकती है। परिषद आदिवासी और अनुसूचित जाति दोनों के विकास कार्यों की निगरानी करेगी, जिससे योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके।

इस परिषद के गठन से आदिवासी उप योजना की तरह ही अनुसूचित जाति समुदायों के लिए भी विभिन्न विकासात्मक योजनाओं के लिए विशेष आवंटन किए जा सकते हैं। यह कदम न केवल झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए, बल्कि समग्र अनुसूचित जाति समाज के लिए एक वरदान साबित हो सकता है।

निष्कर्ष

टीएसी (Tribal Advisory Council) आदिवासी समुदाय के विकास के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण संस्था है, जो आदिवासी समाज की समस्याओं का समाधान करती है और उनके कल्याण के लिए आवश्यक योजनाओं की सिफारिश करती है। यह भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों के आधार पर कार्य करती है और आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए आवश्यक कदम उठाती है।

झारखंड जैसे राज्यों में टीएसी की तर्ज पर अनुसूचित जाति परामर्शदाता परिषद (Scheduled Caste Advisory Council) का गठन, आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदाय के विकास के लिए एक और कदम हो सकता है।

झारखंड अनुसूचित जाति परामर्शदाता परिषद का गठन राज्य सरकार का एक अत्यधिक सकारात्मक कदम है, जो अनुसूचित जाति समुदाय के लिए विकास की नई राह खोल सकता है। टीएसी की तर्ज पर गठित यह परिषद राज्य में अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा, उनके कल्याण, और उनके सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत मंच प्रदान करेगी। इसके माध्यम से आदिवासी उप योजना और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन और प्रभावी हो सकता है, जिससे झारखंड के आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदाय का समग्र विकास सुनिश्चित हो सकेगा।

 

 

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