एसटी आयोग (ST Commission): संरचना, अधिकार और कार्यप्रणाली

 

एसटी आयोग (ST Commission): संरचना, अधिकार और कार्यप्रणाली

एसटी आयोग का गठन कब और क्यों हुआ?

भारत सरकार ने अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए हैं। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes - NCST) का गठन किया गया।

गठन: एसटी आयोग की स्थापना 19 फरवरी 2004 को संविधान (89वां संशोधन) अधिनियम, 2003 के तहत की गई। इससे पहले, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए एक संयुक्त आयोग था। लेकिन उनकी समस्याओं और आवश्यकताओं को अलग-अलग समझने के लिए एसटी के लिए एक अलग आयोग बनाया गया।

उद्देश्य:

  • अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करना।
  • उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार को सलाह देना।
  • जनजातीय समुदायों को किसी भी प्रकार के शोषण और भेदभाव से बचाना।

 

एसटी आयोग की संरचना और प्रमुख पदाधिकारी

संरचना: आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं। इन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। इनकी सेवा शर्तें और कार्यकाल राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है।

प्रमुख पदाधिकारी:

  1. अध्यक्ष: आयोग का प्रमुख होता है और पूरे आयोग की गतिविधियों का नेतृत्व करता है।
  2. उपाध्यक्ष: अध्यक्ष का सहयोग करता है और उनके कार्यों में सहायता करता है।
  3. अन्य सदस्य: आयोग की विभिन्न समितियों और कार्यों का संचालन करते हैं।

मुख्यालय: एसटी आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसके अलावा, देश के विभिन्न हिस्सों में क्षेत्रीय कार्यालय भी स्थापित किए गए हैं।

एसटी आयोग के अधिकार और कार्य

अधिकार:

  • किसी भी अदालत की तरह गवाह बुलाने और सबूत मांगने की शक्ति
  • अनुसूचित जनजातियों से जुड़े किसी भी मामले की जांच करने का अधिकार।
  • सरकार को जनजातीय विकास से जुड़े मामलों में सुझाव देने की शक्ति।
  • विभिन्न राज्यों में जनजातीय कल्याण योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी
  • अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की शिकायतें सुनना और कार्रवाई करना

मुख्य कार्य:

  1. नीतिगत सिफारिशें देना: अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से संबंधित योजनाओं और नीतियों पर सरकार को सुझाव देना।
  2. शिकायत निवारण: जनजातीय लोगों से जुड़े मानवाधिकार हनन, शोषण और भेदभाव के मामलों की जांच करना।
  3. शोध और रिपोर्ट तैयार करना: अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर अध्ययन और रिपोर्ट तैयार करना।
  4. संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करना: संविधान द्वारा अनुसूचित जनजातियों को दिए गए अधिकारों की रक्षा करना।
  5. सरकारी योजनाओं की समीक्षा: जनजातीय कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं की निगरानी और उनके प्रभाव का मूल्यांकन करना।
 

मंत्री की घोषणा

झारखंड राज्य में तीन महीने में एसटी आयोग का गठन

रांची: सरकार राज्य में तीन महीने के भीतर अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन कर लेगी। सदन में गुरुवार को कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने बताया कि सरकार ने 2019 में एसटी आयोग को अधिसूचित किया था, लेकिन अब तक इसका गठन नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि नियमावली प्रक्रिया शुरू हो गई है, और तीन महीने के भीतर इसका गठन कर दिया जाएगा। सरकार को आदिवासियों की समस्याओं और न्याय व्यवस्था को सुधारने की आवश्यकता का अहसास है।

कांग्रेस विधायक दल के उपनेता राजेश कच्छप ने सरकार से सवाल किया कि अनुसूचित क्षेत्रों में एसटी आयोग का गठन अनिवार्य है, लेकिन यह अब तक नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि आदिवासी और आदिम जनजाति के अस्तित्व की रक्षा के लिए आयोग जरूरी है। इससे कानूनी अधिकारों की सही निगरानी हो पाएगी।

विश्लेषण और निष्कर्ष

राज्य सरकार की यह घोषणा आदिवासी समुदाय के लिए एक सकारात्मक कदम है। एसटी आयोग के गठन से न केवल उनके अधिकारों की रक्षा होगी, बल्कि सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन भी सुनिश्चित किया जा सकेगा। यह आयोग अनुसूचित जनजातियों के कानूनी अधिकारों की निगरानी करेगा और उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

हालांकि, अभी तक आयोग के गठन में देरी हुई है, जो सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि आयोग समय पर और प्रभावी रूप से कार्यरत हो ताकि अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और कल्याण योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके।

भविष्य की चुनौतियां:

  1. गठन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना और सभी हितधारकों को शामिल करना।
  2. आदिवासी समुदाय की वास्तविक समस्याओं को प्राथमिकता देना और समाधान निकालना।
  3. सरकारी योजनाओं की उचित निगरानी और क्रियान्वयन सुनिश्चित करना

यदि यह आयोग समय पर गठित होता है और सही तरीके से कार्य करता है, तो यह झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है

 

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