भारत में कृषि विकास: त्रैमासिक रुझान और भविष्य के अनुमानों का विश्लेषण (2023-25)
परिचय
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। देश की लगभग half आबादी कृषि पर निर्भर है, और यह क्षेत्र जीडीपी में लगभग 16% का योगदान देता है। हाल के वर्षों में, कृषि क्षेत्र ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन सरकारी नीतियों और तकनीकी प्रगति के कारण इसमें सुधार के संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। इस लेख में, हम 2023-25 के दौरान भारत में कृषि विकास के त्रैमासिक रुझानों और भविष्य के अनुमानों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।
देश के जीडीपी में कृषि का योगदान
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 की आर्थिक समीक्षा शुक्रवार को सदन में पेश की। इसमें अनाज के अधिक उत्पादन को हतोत्साहित करने तथा दलहन व खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 'कृषि और संबद्ध कार्यकलाप' का क्षेत्र लंबे समय से राष्ट्रीय आय और रोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में कार्य करता रहा है। यह क्षेत्र वर्तमान मूल्यों पर वित्त वर्ष 2024-25 के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 16 प्रतिशत का योगदान देता है और लगभग 46.1 प्रतिशत आबादी को समर्थन प्रदान करता है। इसके प्रदर्शन का प्रत्यक्ष प्रभाव न केवल खाद्य सुरक्षा पर पड़ता है, बल्कि यह अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है, आजीविका को संपोषित करता है और आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करता है। हाल के वर्षों में, भारत में कृषि क्षेत्र ने चुनौतियों के बावजूद सहनशीलता का प्रदर्शन करते हुए, वित्त वर्ष 2017-18 से वित्त वर्ष 2023-24 तक सालाना 5% की औसत से मजबूत वृद्धि दिखायी है। वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। यह प्रदर्शन पिछली चार तिमाहियों की तुलना में एक महत्वपूर्ण सुधार को दर्शाता है, जिसके दौरान विकास दर में 0.4 प्रतिशत से 2.0 प्रतिशत तक मामूली परिवर्तन देखा गया। विकास दर में हालिया वृद्धि का श्रेय बेहतर परिस्थितियों को दिया जा सकता है, जिसका आधार संभाव्यतः अनुकूल मौसम पैटर्न, कृषि पद्धतियों में उन्नति और इस क्षेत्र में उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा की गयी पहल हैं।
भारत की 100 percent निर्यात नीति: पुष्प-कृषि के साथ उभरता उद्योग
भारत का पुष्प-कृषि उद्योग एक उच्च प्रदर्शन वाले क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ है, जिसने 100 प्रतिशत निर्यात नीति के साथ उभरते उद्योग के रूप में अपनी स्थिति अर्जित की है। वैश्विक स्तर पर फूलों की बढ़ती मांग से प्रेरित होकर पुष्प-कृषि, कृषि उत्पादन में एक प्रमुख वाणिज्यिक उद्यम के रूप में विकसित हुई है। वाणिज्यिक पुष्प-कृषि रूप से आकर्षक है, जो कई पारंपरिक क्षेत्र की फसलों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक लाभ प्रदान करती है। वाणिज्यिक पुष्प-कृषि के अंतर्गत लाभप्रद व्यवस्था में कट-फ्लावर प्रोडक्शन, लूज-फ्लावर प्रोडक्शन, सूखे फूल, कट ग्रीन्स, पॉट प्लांट्स, फूलों के बीज, इत्र और आवश्यक तेल शामिल हैं। चावल-आधारित फसल अनुक्रमों में फूलों को शामिल करने से अन्य अनुक्रमों जैसे कि चावल-सोयाबीन, चावल-बेल मिर्च, चावल-चारा मक्का, चावल-लोबिया और चावल-मूली की तुलना में अधिक शुद्ध लाभ मिला। इसके अलावा, अनाज, दालों, सब्जियों और तिलहन के विकल्पों की तुलना में फूलों की अंतर-फसली व्यवस्था अधिक लाभदायक है। सब्सिडी संबंधी सहायता और फसल ऋण वित्तपोषण के साथ, यह पुष्प कृषि के अंतर्गत सीमांत और छोटे भू-स्वामियों के लिए एक आशाजनक उद्यम है, जो कुल भू-स्वामियों का 96% है।
किसानों को ₹19.28 लाख करोड़ सहायता के दिये गये कृषि ऋण
चालू वित्त वर्ष 2024-25 के पहले नौ महीनों में 19.28 लाख करोड़ रुपये के जमीनी स्तर के कृषि ऋण (जीएलसी) जारी किये जा चुके हैं। वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को बयान में यह जानकारी देते हुए कहा कि पूरे वित्त वर्ष के लिए कृषि ऋण वितरण का लक्ष्य 27.50 लाख करोड़ रुपये है। 31 दिसंबर, 2024 तक इसमें से 70 प्रतिशत ऋण जारी किया जा चुका है। सुविधाजनक कृषि ऋण की मदद से ग्रामीण क्षेत्र के लिए कर्ज बढ़ाने के मकसद से सरकार जीएलसी का वार्षिक लक्ष्य तय करती रही है। पिछले दशक के दौरान कृषि ऋण जारी करने में 13 प्रतिशत से अधिक की औसत वार्षिक वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2023-24 में 25.48 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण जारी किया गया। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत सरकार ने 27.5 लाख करोड़ रुपये का जीएलसी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें कृषि से जुड़ी गतिविधियों जैसे डेयरी, पॉल्ट्री, भेड़ बकरी, सूअर पालन, मत्स्य पालन और पशुपालन के लिए 4.20 लाख करोड़ रुपये रखे गये हैं।
रति बूंद अधिक फसल: सिंचाई क्षेत्र का कवरेज बढ़ कर 55% हुआ
आर्थिक समीक्षा 2024-25 में किसानों की सिंचाई व्यवस्था का भी जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि सिंचाई सुविधाओं को सुगम बनाने के लिए कृषि विकास और जल संरक्षण परिपाटियों को सरकार ने प्राथमिकता दी है। वित्त वर्ष 2015-16 और वित्त वर्ष 2020-21 के बीच सिंचाई क्षेत्र का कवरेज सकल फसली क्षेत्र (जीसीए) 49.3 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत हो गया है, जबकि सिंचाई की सघनता 144.2 प्रतिशत से बढ़कर 154.5 प्रतिशत हो गयी है। इसमें कहा गया है कि 2015-16 के वित्तीय वर्ष से, सरकार जल दक्षता को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाइ) के एक घटक, प्रति बूंद अधिक फसल (पीडीएमसी) पहल को लागू कर रही है। पीडीएमसी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्यों को 21968.75 करोड़ रुपये जारी किये गये और 95.58 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया, जो प्री-पीडीएमसी अवधि की तुलना में लगभग 104.67 प्रतिशत अधिक है।
त्रैमासिक कृषि विकास के रुझान (2023-24)
पहली तिमाही (Q1) 2023-24
2023-24 की पहली तिमाही में, कृषि क्षेत्र ने 2.7% की वृद्धि दर्ज की। यह वृद्धि मुख्य रूप से अच्छे मानसून और सरकारी योजनाओं के सकारात्मक प्रभाव के कारण हुई। पीएम-किसान जैसी योजनाओं ने किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की, जिससे उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि हुई। इसके अलावा, डिजिटल प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग ने भी कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया।
दूसरी तिमाही (Q2) 2023-24
दूसरी तिमाही में, कृषि विकास दर में मामूली गिरावट देखी गई, और यह 2.3% रही। इस गिरावट का मुख्य कारण कुछ क्षेत्रों में मानसून की अनिश्चितता और फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव था। हालांकि, सरकारी योजनाओं और नीतिगत सुधारों ने इस गिरावट को और अधिक बढ़ने से रोका।
तीसरी तिमाही (Q3) 2023-24
तीसरी तिमाही में, कृषि क्षेत्र ने 5.2% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। यह वृद्धि मुख्य रूप से रबी फसलों के अच्छे उत्पादन और सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के कारण हुई। इसके अलावा, किसानों को बेहतर बाजार संपर्क प्रदान करने के लिए ई-नाम जैसे प्लेटफॉर्मों का उपयोग भी बढ़ा।
चौथी तिमाही (Q4) 2023-24
चौथी तिमाही में, कृषि विकास दर 17.6% तक पहुंच गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से खरीफ फसलों के उत्पादन में वृद्धि और सरकारी योजनाओं के सकारात्मक प्रभाव के कारण हुई। इसके अलावा, किसानों को मूल्य जोखिम से बचाने के लिए बाजार तंत्र स्थापित करने के प्रयासों ने भी इस वृद्धि में योगदान दिया।
त्रैमासिक कृषि विकास के रुझान (2024-25)
पहली तिमाही (Q1) 2024-25
2024-25 की पहली तिमाही में, कृषि क्षेत्र ने 1.7% की वृद्धि दर्ज की। यह वृद्धि मुख्य रूप से मानसून की अनिश्चितता और कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति के कारण हुई। हालांकि, सरकारी योजनाओं और नीतिगत सुधारों ने इस गिरावट को और अधिक बढ़ने से रोका।
दूसरी तिमाही (Q2) 2024-25
दूसरी तिमाही में, कृषि विकास दर में मामूली सुधार देखा गया, और यह 3.7% रही। यह सुधार मुख्य रूप से रबी फसलों के अच्छे उत्पादन और सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के कारण हुआ। इसके अलावा, किसानों को बेहतर बाजार संपर्क प्रदान करने के लिए ई-नाम जैसे प्लेटफॉर्मों का उपयोग भी बढ़ा।
तीसरी तिमाही (Q3) 2024-25
तीसरी तिमाही में, कृषि क्षेत्र ने 0.4% की मामूली वृद्धि दर्ज की। यह वृद्धि मुख्य रूप से मानसून की अनिश्चितता और कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति के कारण हुई। हालांकि, सरकारी योजनाओं और नीतिगत सुधारों ने इस गिरावट को और अधिक बढ़ने से रोका।
चौथी तिमाही (Q4) 2024-25
चौथी तिमाही में, कृषि विकास दर 0.6% तक पहुंच गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से खरीफ फसलों के उत्पादन में वृद्धि और सरकारी योजनाओं के सकारात्मक प्रभाव के कारण हुई। इसके अलावा, किसानों को मूल्य जोखिम से बचाने के लिए बाजार तंत्र स्थापित करने के प्रयासों ने भी इस वृद्धि में योगदान दिया।
भविष्य के अनुमान
नीतिगत सुधार और उनका प्रभाव
भविष्य में, कृषि क्षेत्र के विकास के लिए नीतिगत सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। सरकार ने कृषि क्षेत्र में कई नीतिगत बदलावों की घोषणा की है, जिनमें मूल्य जोखिम प्रबंधन, अत्यधिक उर्वरक उपयोग को रोकना, और जल-गहन फसलों के उत्पादन को हतोत्साहित करना शामिल है। इन नीतियों के सफल क्रियान्वयन से कृषि उत्पादकता में वृद्धि होने की उम्मीद है।
डिजिटल प्रौद्योगिकी का योगदान
डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग कृषि क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है। ई-नाम जैसे प्लेटफॉर्म किसानों को बेहतर बाजार संपर्क प्रदान कर रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है। भविष्य में, डिजिटल प्रौद्योगिकी के और अधिक उपयोग से कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में और वृद्धि होने की उम्मीद है।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां
जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। मानसून की अनिश्चितता और सूखे की स्थिति कृषि उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। भविष्य में, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए सरकार और किसानों को मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी।
आय विविधीकरण
कृषि क्षेत्र में आय विविधीकरण भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति है। पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों में निवेश से किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। सरकारी योजनाओं और नीतिगत सुधारों के माध्यम से इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत में कृषि क्षेत्र का विकास देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 2023-25 के दौरान, कृषि क्षेत्र ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन सरकारी नीतियों और तकनीकी प्रगति के कारण इसमें सुधार के संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। भविष्य में, नीतिगत सुधार, डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग, और आय विविधीकरण कृषि क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण होंगे। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और किसानों को मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी। इन प्रयासों के माध्यम से, भारत का कृषि क्षेत्र न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि किसानों की आय और जीवन स्तर में भी सुधार लाएगा।