झारखंड के आदिवासी समाज की पारंपरिक व्यवस्था

 

झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में पुराने समय से संचालित थी लोकतांत्रिक व्यवस्था

 
झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में पुराने समय से संचालित थी लोकतांत्रिक व्यवस्था


पारंपरिक स्वशासन का केंद्र था गंडु सरजोम स्थल

झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में पुराने समय से संचालित थी लोकतांत्रिक व्यवस्था

 

झारखंड के आदिवासी समाज में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की परंपरा सदियों पुरानी है। खूंटी जिले के पोसेया गांव स्थित गंडु सरजोम इसका एक प्रमुख उदाहरण है। यह ऐतिहासिक स्थल पारंपरिक पड़हा व्यवस्था का केंद्र था, जहां 12 विभिन्न गोत्रों के मुंडा पड़हा राजा समाज के विकास और प्रशासनिक निर्णय लेते थे।

पीढ़ा पत्थर पर बैठकर होता था निर्णय

गंडु सरजोम में एक प्राचीन सरजोम (सखुआ) पेड़ के नीचे 12 पत्थर (पीढ़ा) रखे गए थे, जिन पर नक्काशी की गई थी। इन पत्थरों पर बैठकर 12 गोत्रों के पड़हा राजा सामूहिक चर्चा कर न्याय और प्रशासनिक फैसले सुनाते थे। इन गोत्रों में मुंडू, टुटी, सांगा, हेरेंज, तिड़, भेंगरा, गुड़िया, तोपनो, बाबा, हेमरोम, होरो और तानि शामिल थे।

मुंडा सभा के बिलकन डांग के अनुसार, इनमें से चार पीढ़ा अभी भी सुरक्षित हैं, चार टूटी-फूटी हालत में हैं, एक रांची के जनजातीय शोध संस्थान के संग्रहालय में रखा गया है, एक चालम गांव में है, और एक पीढ़ा गायब हो चुका है। यह व्यवस्था दर्शाती है कि आदिवासी समाज में सामूहिक निर्णय लेने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही थी।

लोकतांत्रिक परंपरा का प्रतीक

गंडु सरजोम की यह पड़हा व्यवस्था पारंपरिक स्वशासन की एक अनूठी मिसाल थी। यहां कोई भी निर्णय सामूहिक सहमति से लिया जाता था, जो साबित करता है कि झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में लोकतांत्रिक मूल्य सदियों पहले से मौजूद थे। यह व्यवस्था आधुनिक पंचायती राज व्यवस्था से मिलती-जुलती है, जहां सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से शासन चलाया जाता था।

गंडु सरजोम में वार्षिकोत्सव का आयोजन

इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए मुंडा सभा द्वारा हाल ही में गंडु सरजोम में वार्षिकोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर रांची सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। बिलकन डांग ने बताया कि इस स्थल के संरक्षण के लिए कल्याण मंत्री चमरा लिंडा को एक ज्ञापन भी सौंपा गया है।

निष्कर्ष

गंडु सरजोम की यह पारंपरिक व्यवस्था झारखंड के आदिवासी समाज की सामूहिक निर्णय प्रक्रिया और लोकतांत्रिक मूल्यों को दर्शाती है। आधुनिक युग में भी इस तरह की ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी रहें।

 

 

 

 

 


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