झारखंड के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था: समस्याएं और समाधान
प्रस्तावना
झारखंड, जिसे "वनों का राज्य" कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक संपदा और आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की कमी, प्रशासनिक उदासीनता और छात्रों के ड्रॉपआउट जैसी समस्याएँ गंभीर हैं। इस लेख में हम झारखंड के सरकारी स्कूलों की मौजूदा हालत, समस्याओं के मूल कारण और संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
झारखंड के सरकारी स्कूलों की वर्तमान स्थिति
1. बुनियादी सुविधाओं का अभाव
सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढाँचे की कमी एक बड़ी समस्या है। कई स्कूलों में:
- चहारदीवारी नहीं होने से बच्चों की सुरक्षा खतरे में है। जानवरों का आना-जाना लगा रहता है।
- पेयजल की समस्या – कई स्कूलों में चापाकल खराब हैं या पानी की आपूर्ति नहीं है।
- बिजली और शौचालय जैसी आवश्यक सुविधाओं का अभाव है।
उदाहरण: हजारीटांड़ स्कूल में एक चापाकल खराब है और दूसरे
से केवल 3-4 बाल्टी पानी ही मिल पाता है। रसोइयों को दूर से पानी लाना
पड़ता है, जिससे मध्याह्न भोजन (MDM) प्रभावित होता है।
2. शिक्षकों की कमी और गुणवत्ता
- राज्य में 26,000 शिक्षकों के पद खाली हैं।
- कई स्कूलों में केवल एक या दो शिक्षक सभी कक्षाओं को पढ़ाते हैं।
- शिक्षकों का अनियमित प्रशिक्षण और पारदर्शिता की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
3. छात्रों का ड्रॉपआउट दर
- प्राथमिक से माध्यमिक स्तर तक केवल 62% छात्र ही पहुँच पाते हैं।
- लड़कियों का ड्रॉपआउट दर अधिक है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
4. प्रशासनिक उदासीनता
- शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं: कई स्कूलों ने चहारदीवारी और पानी की समस्या के लिए अधिकारियों को पत्र लिखे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
- भ्रष्टाचार: शिक्षा विभाग में 3,000 से अधिक मामले लंबित हैं, जिससे शिक्षक भर्ती और बुनियादी विकास प्रभावित होता है।
मुख्य समस्याएँ और उनके कारण
1. चहारदीवारी का अभाव
प्रभाव:
- बच्चों की सुरक्षा को खतरा।
- जानवरों और अन्य बाहरी लोगों का प्रवेश।
कारण:
- सरकारी फंड का सही उपयोग न होना।
- स्थानीय प्रशासन की लापरवाही।
2. पानी और स्वच्छता की समस्या
प्रभाव:
- बच्चों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता।
- शौचालय न होने से लड़कियों की शिक्षा प्रभावित होती है।
कारण:
- जल संसाधन विभाग और शिक्षा विभाग के बीच समन्वय की कमी।
3. शिक्षकों की कमी
प्रभाव:
- छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती।
- एक ही शिक्षक को कई कक्षाएँ पढ़ानी पड़ती हैं।
कारण:
- भर्ती प्रक्रिया में देरी और भ्रष्टाचार।
- शिक्षकों का ग्रामीण क्षेत्रों में तैनाती से मना करना।
4. ड्रॉपआउट दर
प्रभाव:
- राज्य का साक्षरता दर प्रभावित होता है।
- बच्चे मजदूरी या अन्य कामों में लग जाते हैं।
कारण:
- गरीबी और अभिभावकों में जागरूकता की कमी।
- स्कूलों में रुचिकर शिक्षण पद्धति का अभाव।
संभावित समाधान
1. बुनियादी सुविधाओं में सुधार
- चहारदीवारी का निर्माण: जिला शिक्षा कोष का उपयोग करके तुरंत कार्रवाई की जाए।
- पानी की व्यवस्था: चापाकल की मरम्मत और हैंडवाश यूनिट लगाए जाएँ।
- डिजिटल क्लासरूम: स्मार्ट क्लासेज और कंप्यूटर लैब की व्यवस्था की जाए।
2. शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण
- 26,000 शिक्षकों की तुरंत भर्ती की जाए।
- नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।
3. छात्रों को प्रोत्साहन
- छात्रवृत्ति योजनाएँ बढ़ाई जाएँ।
- मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता सुधारी जाए।
4. सामुदायिक भागीदारी
- ग्रामीणों और पंचायतों को जोड़कर स्कूलों की निगरानी की जाए।
- इको क्लब बनाकर पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
5. प्रशासनिक सुधार
- ऑनलाइन शिकायत प्रणाली लागू की जाए।
- जवाबदेही तय की जाए कि शिकायतों पर कितने दिनों में कार्रवाई होगी।
निष्कर्ष
झारखंड के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार, प्रशासन और समुदाय को मिलकर काम करना होगा। बुनियादी सुविधाओं, शिक्षकों की भर्ती और छात्रों के प्रोत्साहन पर ध्यान देकर ही राज्य की शिक्षा प्रणाली को सुधारा जा सकता है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो झारखंड का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।
"शिक्षा ही वह माध्यम है जो झारखंड को न केवल विकास की ओर ले जाएगी, बल्कि यहाँ के युवाओं को रोजगार और सम्मान भी देगी।"