FPI क्या है?

 

FPI क्या है?

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FPI की परिभाषा

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) एक प्रकार का निवेश है जिसमें विदेशी निवेशक किसी देश के वित्तीय बाजारों में शेयर, बॉन्ड, म्यूचुअल फंड, और अन्य वित्तीय संपत्तियों में पैसा लगाते हैं। यह निवेश आमतौर पर अल्पकालिक होता है और निवेशकों को मुनाफा कमाने के लिए बाजार में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने के लिए किया जाता है। FPI का उद्देश्य दीर्घकालिक नियंत्रण या स्वामित्व प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि वित्तीय लाभ कमाना होता है।

FDI और FPI में अंतर

  • FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश): FDI में विदेशी निवेशक किसी देश में सीधे व्यापार या उद्योग स्थापित करते हैं। यह दीर्घकालिक निवेश होता है और इसमें निवेशक को कंपनी के प्रबंधन में हिस्सेदारी मिलती है।
  • FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश): FPI में निवेशक वित्तीय बाजारों में संपत्ति खरीदते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य कंपनी के प्रबंधन में हिस्सा लेना नहीं होता। यह निवेश अल्पकालिक और अधिक तरल होता है।

हालांकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment - FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) दोनों ही विदेशी निवेश के रूप हैं, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:

FPI

इन अंतरों के माध्यम से स्पष्ट होता है कि FDI और FPI दोनों के अपने-अपने लाभ और सीमाएँ हैं, और दोनों का आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है।

भारत की अर्थव्यवस्था में FPI की भूमिका

FPI भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूंजी प्रवाह को बढ़ाता है और बाजार में तरलता लाता है। यह शेयर बाजार को स्थिरता प्रदान करता है और कंपनियों को पूंजी जुटाने में मदद करता है। हालांकि, FPI की अस्थिर प्रकृति के कारण, यह बाजार में उतार-चढ़ाव भी पैदा कर सकता है।

भारत में FPI का आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था में FPI की भूमिका को स्पष्ट करते हैं:

  1. पूंजी प्रवाह में वृद्धि: FPI के माध्यम से विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ता है, जिससे देश के वित्तीय बाजारों में तरलता बढ़ती है और कंपनियों को आवश्यक धन उपलब्ध होता है।
  2. बाजार दक्षता में सुधार: विदेशी निवेशकों की उपस्थिति से कॉर्पोरेट प्रशासन और पारदर्शिता में सुधार होता है, क्योंकि कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करने का प्रयास करती हैं।
  3. विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि: FPI से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है, जिससे बाहरी आर्थिक झटकों को संभालने में मदद मिलती है।
  4. जोखिम विविधीकरण के अवसर: निवेशकों को विभिन्न बाजारों में निवेश करने का अवसर मिलता है, जिससे वे अपने पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं और जोखिम को कम कर सकते हैं।
  5. आर्थिक विकास में योगदान: FPI के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में निवेश होता है, जिससे आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है और रोजगार के नए अवसर सृजित होते हैं।   

 

FPI से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ

हालांकि FPI भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई लाभ लाता है, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिन पर ध्यान देना आवश्यक है।

1. बाजार में अस्थिरता (Volatility)

  • FPI निवेश आमतौर पर अल्पकालिक होता है। जब विदेशी निवेशक अपने शेयर या बॉन्ड बेचते हैं, तो इससे बाजार में गिरावट आ सकती है।
  • किसी भी वैश्विक संकट या ब्याज दरों में बदलाव से FPI निवेशक जल्दी अपना पैसा निकाल सकते हैं, जिससे बाजार में उथल-पुथल मच सकती है।

2. रुपये की अस्थिरता पर प्रभाव

  • जब FPI निवेश बढ़ता है, तो रुपये की मांग भी बढ़ जाती है, जिससे मुद्रा मजबूत होती है। 
  • लेकिन जब FPI निवेशक तेजी से पैसा निकालते हैं, तो रुपये का मूल्य गिर सकता है, जिससे आयात महंगा हो जाता है। 

 3. नीतिगत अनिश्चितता (Policy Uncertainty)

  • भारतीय सरकार और RBI द्वारा किए गए नीतिगत बदलावों का सीधा असर FPI निवेशकों के फैसलों पर पड़ता है।
  • कर नियमों में अचानक बदलाव, ब्याज दरों में बढ़ोतरी या विदेशी निवेश पर प्रतिबंध FPI प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।

4. वैश्विक आर्थिक घटनाओं का प्रभाव

  • अमेरिका की फेडरल रिजर्व नीति, यूरोप की आर्थिक स्थिति या चीन की व्यापार नीति भी भारतीय FPI प्रवाह को प्रभावित कर सकती हैं। 
  • वैश्विक मंदी की स्थिति में विदेशी निवेशक अपने निवेश को सुरक्षित परिसंपत्तियों (जैसे गोल्ड और सरकारी बॉन्ड) में शिफ्ट कर सकते हैं। 

FPI का भारतीय शेयर बाजार पर प्रभाव

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बाजार में उतार-चढ़ाव और विदेशी निवेशकों की भूमिका

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) भारतीय शेयर बाजार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब FPI निवेश बढ़ता है, तो बाजार में तरलता बढ़ती है और शेयर की कीमतें ऊपर जाती हैं। इसके विपरीत, जब FPI निवेशक अपना पैसा निकालते हैं, तो बाजार में गिरावट आती है। FPI निवेशकों की गतिविधियां बाजार के उतार-चढ़ाव को प्रभावित करती हैं।

FPI निवेश बढ़ने या घटने पर बाजार का रुख

  • FPI निवेश बढ़ने पर: बाजार में तेजी आती है और निवेशकों का भरोसा बढ़ता है। 
  • FPI निवेश घटने पर: बाजार में मंदी आती है और निवेशकों का भरोसा कम होता है।

भारतीय निवेशकों के लिए इसके फायदे और नुकसान

  • फायदे: FPI से बाजार में तरलता बढ़ती है और निवेशकों को अधिक अवसर मिलते हैं। 
  • नुकसान: FPI की अस्थिर प्रकृति के कारण बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है, जो छोटे निवेशकों के लिए जोखिम भरा हो सकता है।

सरकार की नीतियां और FPI: विदेशी निवेशकों के लिए नियम और विनियम

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सेबी (SEBI) द्वारा बनाए गए नियम

भारत में FPI को विनियमित करने के लिए RBI और SEBI ने कई नियम बनाए हैं। इन नियमों का उद्देश्य बाजार को स्थिर रखना और विदेशी निवेशकों के हितों की रक्षा करना है।

कर नियम (टैक्सेशन) और विदेशी निवेश

विदेशी निवेशकों पर भारत में कैपिटल गेन टैक्स लगता है। हाल के वर्षों में, सरकार ने FPI के लिए कर नियमों में कई बदलाव किए हैं ताकि विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया जा सके।

हाल के बदलाव और सरकार की नई नीतियां

हाल ही में, सरकार ने FPI निवेशकों के लिए कर नियमों में छूट दी है और निवेश प्रक्रिया को सरल बनाया है। इससे विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा है और भारतीय बाजार में उनकी भागीदारी बढ़ी है।

FPI बनाम FDI: कौन सा निवेश मॉडल भारत के लिए बेहतर?

दोनों के बीच मुख्य अंतर

  • FPI: अल्पकालिक, वित्तीय बाजारों में निवेश, तरलता बढ़ाता है। 
  • FDI: दीर्घकालिक, व्यापार और उद्योग में निवेश, रोजगार और तकनीकी विकास को बढ़ावा देता है।

दीर्घकालिक और अल्पकालिक निवेश की तुलना

  • FPI: अल्पकालिक निवेश, बाजार में तरलता लाता है लेकिन अस्थिरता भी पैदा कर सकता है। 
  • FDI: दीर्घकालिक निवेश, अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करता है और रोजगार के अवसर पैदा करता है।

भारत के विकास में किसका अधिक योगदान?

FDI का भारत के विकास में अधिक योगदान है क्योंकि यह दीर्घकालिक निवेश है और इससे रोजगार, तकनीकी विकास और बुनियादी ढांचे का विकास होता है। हालांकि, FPI भी बाजार में तरलता लाने और पूंजी प्रवाह को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में FPI को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

भारतीय सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने FPI को आकर्षित करने और इसे स्थिर बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण नीतिगत उपाय किए हैं:

1. नीति सुधार और कर छूट

  • सरकार ने FPI निवेश पर कर दरों को सरल और कम किया है, जिससे विदेशी निवेशकों को अधिक आकर्षित किया जा सके। 
  • सेबी (SEBI) ने नए रजिस्ट्रेशन नियमों को आसान बनाया, जिससे FPI को निवेश करने में कोई कठिनाई न हो। 
2. बॉन्ड मार्केट में सुधार 
  • भारत सरकार ने बॉन्ड मार्केट को विदेशी निवेशकों के लिए खोला, जिससे वे सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं।
  • Voluntary Retention Route (VRR) के तहत निवेशकों को बॉन्ड मार्केट में लंबी अवधि के लिए निवेश करने के प्रोत्साहन दिए गए।
3. इंफ्रास्ट्रक्चर और स्टार्टअप सेक्टर में FPI निवेश को बढ़ावा
  • सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर (रेलवे, हाईवे, ऊर्जा) और स्टार्टअप सेक्टर में FPI को प्रोत्साहित करने के लिए नई योजनाएँ शुरू कीं
  •  विदेशी निवेशकों को विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) में निवेश करने की अनुमति दी गई।
 4. बाजार नियमन में पारदर्शिता
  • सेबी (SEBI) ने FPI की निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम को मजबूत किया, जिससे बाजार में पारदर्शिता बढ़ी।
  • नकली ट्रेडिंग और इनसाइडर ट्रेडिंग के खिलाफ कड़े कानून लागू किए गए, जिससे विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ा।

FPI से संबंधित हालिया समाचार

1.  2025 : एफपीआइ ने मार्च के पहले पखवाड़े में शेयरों से निकाले 30,000 करोड़ रुपये: एक विस्तृत विश्लेषण

FPI

  • एफपीआइ (Foreign Portfolio Investment) और इसके प्रभाव : विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआइ) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजारों, बॉन्ड्स और अन्य वित्तीय उत्पादों में निवेश करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में एफपीआइ का महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन जब विदेशी निवेशक अपने निवेश को निकालते हैं, तो यह भारतीय बाजारों पर गहरा प्रभाव डालता है। हाल ही में, एफपीआइ ने मार्च 2025 के पहले पखवाड़े में भारतीय शेयर बाजारों से 30,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है, जो एक चिंता का विषय बन गया है।
  • FPI द्वारा निकासी का सिलसिला : एफपीआइ की भारतीय शेयर बाजारों से निकासी का यह सिलसिला अब लगातार जारी है। यह मार्च का पहला पखवाड़ा था जब 30,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि शेयरों से निकाली गई है। इससे पहले, फरवरी 2025 में एफपीआइ ने 34,574 करोड़ रुपये और जनवरी में 78,027 करोड़ रुपये की निकासी की थी। इस तरह, 2025 में अब तक एफपीआइ ने भारतीय शेयर बाजार से कुल 1.42 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं।

    यह लगातार निकासी निवेशकों और बाजार के लिए चिंता का कारण बन रही है। जब बड़े पैमाने पर निवेशक अपने निवेश को वापस लेते हैं, तो इसका प्रभाव शेयर बाजार पर पड़ता है, जिससे बाजार में गिरावट आ सकती है।

  • FPI की निकासी के कारण :

 1. वैश्विक व्यापार तनाव :
 दुनियाभर में व्यापारिक तनाव बढ़ने के कारण एफपीआइ ने भारतीय शेयर बाजार से अपने निवेश को कम करना शुरू किया है। खासकर अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध के कारण वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता का माहौल बन गया है।
 
 2. अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में उछाल :
अमेरिकी बॉन्ड पर प्रतिफल (yield) बढ़ने से एफपीआइ के लिए वहां निवेश करना आकर्षक हो गया है। अमेरिकी बॉन्ड्स में अधिक लाभ होने के कारण निवेशक भारतीय बाजारों से पैसे निकालकर अमेरिकी बाजार में निवेश कर रहे हैं। 
 
 3. डॉलर की मजबूती : 
डॉलर की कीमत में वृद्धि भी एफपीआइ के निवेश निर्णय को प्रभावित कर रही है। डॉलर की मजबूती के कारण अमेरिकी संपत्तियाँ विदेशी निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन रही हैं, जिससे वे भारतीय बाजारों से अपनी पूंजी निकाल रहे हैं। 
 
 4. भारतीय बाजार में कमजोर प्रदर्शन : 
 भारतीय शेयर बाजार में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है, जिससे निवेशकों का भरोसा कम हुआ है। इस स्थिति में एफपीआइ के लिए अपनी पूंजी निकालने का निर्णय लेना समझदारी प्रतीत हो रहा है।
  •  बॉन्ड में निवेश और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (VRR) : एफपीआइ ने मार्च के पहले पखवाड़े में भारतीय बॉन्ड बाजार में भी 7,355 करोड़ रुपये का निवेश किया है। हालांकि, स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (VRR) के तहत उन्होंने 325 करोड़ रुपये निकाले हैं।स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (VRR) एक ऐसा निवेश मार्ग है जिसके तहत एफपीआइ भारत में लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देने के लिए अपनी पूंजी को एक निश्चित सीमा तक रख सकते हैं। इसके बावजूद, निकासी की प्रक्रिया कुछ मामलों में जारी रही है, जो कि एफपीआइ के लिए अस्थिरता और अनिश्चितता को दर्शाता है।

 

FPI का भविष्य और संभावनाएँ

1. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेक्नोलॉजी में निवेश

  • 2025-2030 तक, AI, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी सेक्टर में FPI निवेश बढ़ने की संभावना है। 
  • भारत की बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बन रही है। 
2. ग्रीन एनर्जी और EV सेक्टर में FPI 
  • सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों में FPI निवेश तेजी से बढ़ रहा है
  • सरकार की ग्रीन हाइड्रोजन और EV स्कीम ने निवेशकों को आकर्षित किया
3. भारतीय स्टार्टअप और IPO मार्केट का विस्तार 
  • 2025-26 में कई बड़े भारतीय स्टार्टअप IPO लॉन्च करेंगे, जिससे FPI निवेशकों के लिए नए अवसर खुलेंगे 
  • सरकार Make in India और Digital India के तहत विदेशी निवेश को आकर्षित करने की योजना बना रही है 

निष्कर्ष

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। यह पूंजी प्रवाह, बाजार की दक्षता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। हालांकि, इसमें अस्थिरता और नीतिगत अनिश्चितताओं जैसी चुनौतियाँ भी शामिल हैं।

सरकार और RBI द्वारा किए गए सुधारों से, भारत में FPI निवेशकों का भरोसा लगातार बढ़ रहा है। आने वाले वर्षों में, तकनीकी, स्टार्टअप, ग्रीन एनर्जी और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में FPI का योगदान और अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है

एफपीआइ की भारतीय शेयर बाजारों से लगातार निकासी भारतीय बाजारों के लिए एक चुनौती है। जब वैश्विक व्यापार तनाव, डॉलर की मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड पर प्रतिफल में उछाल जैसी घटनाएँ होती हैं, तो एफपीआइ का भारतीय शेयर बाजार से अपनी पूंजी निकालना स्वाभाविक हो जाता है। हालांकि, भारतीय सरकार और रिजर्व बैंक ने कई सुधारात्मक उपाय किए हैं, लेकिन एफपीआइ के प्रवाह में इस प्रकार की अस्थिरता बाजार में एक चेतावनी के रूप में देखी जा सकती है।

इससे निवेशकों को ध्यान से निवेश के फैसले लेने की आवश्यकता है, और भारतीय बाजारों में दीर्घकालिक स्थिरता के लिए और प्रयास किए जाने चाहिए।

 

 



 

 

 

 

 

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